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________________ ३१६ ] मुंहता नैणसीरी ल्यात गांम गया । प्रभात हुवो। ताहरां पिणिहारियां वात कहै छै-'वाई ! कोई एक काळो-तारो आयो छै। तिको आपरो वाप मराडि धरती गमाय पायो छै। लारां कटक आवै छ। हिवै अांपांहीनूं मराडिसी।' श्रो वोल राव रिणमलजी कानै सुणियौ । सांभळनै पिणिहाररो वचन, अर कह्यो-'अठा प्रागै नहीं जावां । फोजसू लड़ाई करस्यां ।' ताहरां . साथ अपूठो घिरियो । रजपूत ससमा हुआ। वेढ हुई। सिखरै पातसाही ढाल पाड़ी । मुगल नाठा" । भाटी नाठा। रिणमलजी तो फोज मारता-सारता नागोर पाया । भाटी तरक नाठा। रावजी आय नागोर मांहै पैठा । राव रिणमलजो टीक वैठा । वडो राजवो हुवो। २२ वेटा हुवा । राव चूंडजोरै प्रधान सावटू भाटी, ऊंनो राठोड़ ।' I कोई एक दुर्भागी (कलंकी) पाया है। वह अपने वापको भरवा कर और अपनी धरती (देश) खो कर पाया है। - 2 पीछे। 3 अब अपनेको ही मरवावेगा। .. 4 यहांसे आगे नहीं जायेंगे। 5 राजपूत तैयार हुए। 6 सिखरेने बादशाही सेना पर विजय पाई। 7 मुगल भाग गये। 8 रावजीने पा कर नागौर में प्रवेश किया। 9 राब चूंडाजीके प्रधान सावट भाटी और कना राठौड़ थे।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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