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________________ २०६ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात वात सरवहिया जेसारी राव मंडळीक तो गैहलो हुवो। तरै जसो मंडळीकरो लोहड़ो भाई, तिण सारो धरतीरो भार संभायो' । धरतीरा सारा रजपूत लेने भाखरै पैठो । धरतीरो विगाड़ घणो करै छै । गढ गिरनार माहै पातसाहरो वडो थांणों छै। धरती माहै थांणा ठोड़ ठोड़ राखिया छै, पण धरती भोग पड़ सकै नहीं । पातसाह धरती राह हुय लागो छ, पण सरवहियो जेसो हाथ आवै नहीं । पातसाह घणो ही उपाव करै छै । तिण समै किणहीक कह्यो पातसाहनूं-'चारण वीरधवळ. लांगड़ियो, यो पातसाही मुलकमें रहै छै । इणसूं जेसो घणी मया करै छ । ओ वडो कवीसर छै । इणसूं जेसो निपट कावो छ । सु इणरा माणस वेटा बंद करो, नै कहीजो-"जेसानूं आंण दै तो थारी बंद छोडां।" प्रो जेसानूं कहस्यो तठे प्रांण देसी । तरै चारण वीरधवळरो. कबीलो पातसाह सरब पकड़ायो, तरै चारण वांस हुवो आयो । ... माल उण घणोही धांमियो', पण पातसाह चारणरो कवीलो छोडै नहीं । चारण→ पातसाह कह्यो-"माल कितरोही दीय, थारो कबीलो छूट नहीं11 । तूं जेसा सरवहिया अठ ल्यावै तो थारो कवीलो छूट ।' तरै इण चारण तो घणोही उजर कियो, पण पातसाह हठ पड़ियो कहै"एक बार जेसो म्हांनूं प्रांखियां दिखाव' ।” तरै चारण वीरधवळ .. जेसा सरवहिया कनै गयो। सारी वात मांड जेसानूं कही । तरै जेसै कह्यो-"भली वात, थांहरा माणस छूटसी सु करस्यां14 ।" पछै । ____ I तव मंडलीकका छोटा भाई जैसा जिसने देशका सारा भार सम्हाला । 2 देशके सभी . ' राजपूतोंको लेकर पहाड़ोंमें घुस गया। 3 लेकिन देश आवाद होकर राजस्व-साधनके योग्य नहीं हो सका। 4 वादशाह राह होकर देशके पीछे लगा है, पर सरवहिया जैसा हाथ, . नहीं पाता। 5 किसी एकने । 6 जैसा इसके साथ बड़ी कृपाका व्यवहार करता है और यह बड़ा कवीश्वर है । 7 जैसा इससे वहुत ही दवा रहता है । 8 इसका जनाना और वेटोंको. . वंद करदो और इसको कहो कि जैसेको लादे तो तेरे बंदी छोड़ दें। यह कहोगे वहीं :: जैसाको ला देगा। 9 तब चारण उनके पीछे अाया। 10 उसने वहुतेरा धन-माल ले लेनेका... श्राग्रह किया। I माल कितना ही दे देने पर तेरा कवीला नहीं टूटे। 12 एक बार . . . जैसाको मुझे अांखोंसे- दिखा दे ! - 13 अथसे इति तक जैसाको सव वात कहः सुनाई। 14 अच्छी बात है, जिस बातसे तुम्हारा कुटुंब छूटेगा वही करेंगे।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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