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________________ [ ३१३ हस्तलिखित ग्रन्थ-सूची, भाग-२, परिशिष्ट-१ ]. अन्त- करि उदिम अापन वल मंडौ, भोगी अमर बिमाणा छ । समिकि तपोहण दस विधि पूरा, निरमल धरम कराणा छ । सुध सरीरु सहज लव लावहु, भावहु अंतर झा(णा) छ । जंपै बूचा तम सुष पावहु वंछै पद निरबारणा छ । इति टंडारणा समाप्तम् । ३३६. ४६२४ (३) नागदमण कथा (अपूर्ण) आदि-॥०॥ श्रीसारदाय नमः ।। अथ नागदमणि लिप्यते ।। दूहा ।। वलतो सारद विनवं, गुणपति करो पसाऊ । पवाडा पनगां सरस, जदुपति कीधो जाऊ ॥ १ प्रभू अनेके पाडीया, देत वडाचा दंन । के पालण पोढीया, के पय पान करंन ।। २ . कोइ न दीधो कानवा, सुण्यो न लीला बंध । आप बंधावण उषला, बीजा छोडण बंध ॥ ३ अन्त- कलश ॥ सुणे गुणें सम वास, नंदनंदन अहिनारी। समुद्र पार संसार, दोई गोपद अरणहारी। अनंतर पाणंद सवे वषताप सुणावै । भगति मुगति भंडार, क्रशन मुगताह करावै ।। रमीयो चरित राधारमणि'...॥ ५३८. ४६०६ (२) राजसभारंजन __आदि- ॥०॥ अथ राजसभारंजन लिष्यते ॥ गंगाधर सेवहु सदा, गाहक रसिक प्रवीन । राजसभारंजन कहों, मन हुलास रस लीन ॥ १ दंपतिरति नीरोग तन, विद्या सुधन सुगेह । जो दिन जाय आनंदमैं, जीतवको फल एह ॥ २ बीचसे कुछ उदाहरण साथ सहेट चल्यो चहै, मुग्धा तिय पिय छल । पीसेमें कोडी न्हीं, चले बागकी सैल ।। ६७ सहज रीति कुल तजि लगै, कांम कलाकै साज । बाप न मारी मींडकी, वेटा तीरंदाज ।। ७० अन्त- छंद तीनस साठ सब, व्यवहारै सुष देत । राज-सभा-रंजन सरस, कियो रसिकजन हेत ॥ ६७ अंक बांन मुनि ससि (१७५६) समा, विक्रम सक नभ मास । उजल नवमी भृगु दिवस, पूरन रस-प्रकास ॥ ६८ .
SR No.010608
Book TitleHastlikhit Granth Suchi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size16 MB
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