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________________ ३१२ ] [ राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर, जोधपुर . अन्त- सव सरषी नारी नहीं, सव सरपी नहीं वारण । सव गुण एकगामें नहीं, दापु चतुर सुजाण ।। ६२ इती अोपमा लिषगरी, जथाजोग मत जांग । कहत दुलैमल चुप सु, रुप चुप परवांगा ।। ६३ ।। संपुर्ण । तीसरी नकल आदि- सिध श्री प्यारी दिसे, जैपुर नगर जठेह । प्रीतम लिषत वरणायक, नित २ नवल नेह ॥ १ चंदवदनि मृगलोचनी, चिता लंक सुचंग । गजगमणि रस जोग है, अतहि जांण सुचंग ।। २ अन्त- वाहू उतर देजो सदा, कागद अधिक उजास । हित कर लिषजो हेतसुं, दसकत अपणा पास ।। २० संपुरण ।। चौथी नकल आदि- सिध श्री सरवोपमा विराजमान अनेक प्रोपमालायक गुणनिधान वहोतर कलासुजाण, चवदै विध्यानिधानं, सूरज जेहा तेज, चकवा चकवि जिहा हेज, चंद्रमा जेहा सितल, रूपा जेहा ऊजला...... । अन्त- मत किणहिसु लागजो, नैणाहंदो नेह ।। धुके न धुवो नीसर, जलै सुरंगी देह ॥ १८ सजन फलजो फूलजो, वड जूं विसतरजो। नालेरां जु लूंबजो, प्रांवां जु फलजो ॥ १६ ____ इति श्रीपत्री संपुर्ण । २५७ ४६१४ (५४) जोगी रासा आदि- अथ जोगी रास लीपीते ।। ॐ नमः सीध्ये भयो नमः ।। प्रादिपुरिप जो आदिजगोत्तमु, आदिनाथो । आदिजुगोत्तमो जोग पयसो, जय जय जय जगनाथो ॥१ तास परंपर मुनिवर हुअा, दीगांबर सहिनाणी। कुदकुदाचरज' गुरु मेरै, पाहुजी कहिय कहाणी ।। अन्त- जोगीह रासो सीपहु श्रावक, दुष न कवहु लहिसी। जौ जिणदासह त्रिविधि हि, सिबहु समरण कीजहू ।। ४२ ईती जोगीरासो संपुरणमस्तु । २६१. ५४१८ (५४) टंडाणा गीत आदि- टंडारणा टंडारणा वे, जियड़े टंडारणा टंडारणा ॥ इत संसारै दुश भंडार, क्या गुण देपि लुभारणा छ ।। जिन ठग गिया नादइ काल, फिर तस जोग पत्याणा छ । १. कुन्दकुन्दाचार्य । - ...
SR No.010608
Book TitleHastlikhit Granth Suchi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size16 MB
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