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________________ ३१४ ] ५५०. सुपद भूमि संग्रामपुर, श्रीनृपवर जयसाहि । हि कवि मन सुप्रसन्न प्रति, मति रतिसों ग्रवगाह ॥ ६६ लों सुप सज्जन कला, मेरु धरावर धांम । जब तव लों चिर जीवहु रसिक, पढत गुरगत गुंन नाम || ७० इति श्रीराजसभा - रंजन दोहा समाप्तं । संवत् १७६८ वर्षे मिति पोस वदि १४ शुक्रे लिपिकृतं श्रीरस्तु कल्याणमस्तु । राठोड नाहषांनरो छंद ४८३४ आदि - छंद राठोड नाहरपांनरी गाडरण माधोदासरो को || ग्रारज्या ॥ उप्पन्ना पुरसांगी उडा । पांणी पंछा पापर होडा । राकीया रद्दीस जोडा । नाहरपांन समप्प घोडा ॥ १ भाडंजी केवी मुगलांणी । पासा पेंग जिके पुरसाणी । वड पातां सुरण अवरल वाणी । रेवंत रोझ दीयै राजाणी || २ अन्त- कलस || बहस तेज बहु सफल बहुत मोला बहु भोयरण । धीरज तेज अनंत लोय दीप क्वहलोयरण || धड विसाल पैं करह गात उतंगह मैंगल | पवंग वेग विसराल वाजि वीया वेगागल || वरहास वडा वड कवीयरगां त्यागी द्यणं हरते रवै । समपीया पांन राजांनकै कुंप करन्नह अभिनवें ॥ इतिनाहरषांन घोडांरा दाताररौ छंदः संपूरणं ॥ ६४१४ [ राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर, जोधपुर ६०३ विक्रमचरित्र ( हेमाणन्द रचित ) श्रादि - ||६० ॥ श्रीसरस्वत्यै नमः ॥ प्रणम्य देवदेवं च वीतरागसुरचितं ॥ लोकानां हि विनोदाय करिष्येहं कथामिमां ॥ १ नत्त्वा सरस्वती देवी स्वेताभरणभूषिता । पद्मपत्रविशालाक्षी नित्यं पद्मासने स्थिता ॥ २ अन्त - श्री विक्रमनें वेताल कथा कही चउवीस उदार । सोल छियाल भाद्रव मांस । हेमारांद कहे उल्हास || ३६ इति श्रीवेतालपचीसी २४ कथा | दोहा - वलि विक्रम सीसम गयो, पाछो तिरण ही डाल । मडबंधी कांवइ कीयो, तव बोलै भूपाल ॥ १ विशेष- आागेका अंश पूर्ण है । ६१११ आदि - ||र्द० ॥ श्री सरस्वत्यै नमः ॥ विद्याविलास चोपाई दूहा - सरसति नित ग्रापो सुमति, चित्त हित घरि प्रणमेव । जित तित थित थानक अचल, सोभित दह दिसि देवि ॥ १
SR No.010608
Book TitleHastlikhit Granth Suchi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size16 MB
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