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________________ गीत-आदि २५६ ] क्रमांक प्रन्याङ्क प्रन्यनाम __कर्ता भाषा लिपि- | पत्रसमय | संख्या विशेष जिनहर्प | जिनप्रतिमास्थापन स्तवन ३५५५ जिनरस - (३१) ३५७५ जिनवाणीस्तुति रागू० २८वीं श. २४१- रचना सं. १७२५। २४८ | राज० १८वीं श. १७०- | सं. १६५ में रनित । वेणीराम शिवचन्द्र | रागू २०वीं श. २६४ २६५ | " १६वीं श| ५०-५१ २३६८ जिनविनती कनककीर्ति २०६३ ३३७५ जिनहर्पसूरिभास जिनहर्प २०वीं श| ३०५ | ३०६ ३५७५ जिनहर्पमूरिभास | शिवचन्द्र | " " | २६८ २६६ जिनहर्पसूरिगीत " १७वीं श| ६६ वां (३५) | २१२५ | जिनाज्ञास्तवन सविव- नेमीसार । जैन शास्त्रीय चर्चावि० स्वोपज्ञ त्मक कृति । कर्ता ने अन्त मे आपके. विशेपण दिए हैं, उनमें से एक निम्न प्रकार है। साहिश्री शलेमसाहिसमक्ष श्री श्री श्रीसर्वज्ञशत ग्रन्थसत्यतासत्यता का धारक। १४ | ३२०० | जीराउलापार्श्वनाथ सोमविजय " | १७४५ ३ स्तंभनकपुर में स्तवन लिखित । ३५४३ जोगपावडी गोरखनाथ | राजा | १८८२ | १०-१४ २०४८ | ज्ञानपचमीस्तवन केशरकुशल | रागू० १६वीं श ४ | सं. १७५८ में सिद्ध पुर में रचित । ४२२ ज्वरनोछंद कान्ति मेडता में लिखित । १५२ | ३५७३ | ढ ढणस्वाध्याय जिनहर्प रान १८वीं श १७ वां जीर्णप्रति । १५३ / ११२२ ढूढीयानो छंद तथा प्रेमकवि " १६वीं श. १६ वां (२३) सवैया - - - - - - - - -
SR No.010607
Book TitleHastlikhit Granth Suchi Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1956
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size12 MB
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