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________________ ५४ व्यक्तित्व और कृतित्व कवि जी ने उन लोगों के समक्ष एक प्रस्ताव रखा है, जिसका अभिप्राय यह है, कि "आगम को प्रमाण मानकर चलने वाले लोग पहले एक 'पागमसंगीतिका' बुलाएं, जिसमें श्वेताम्बर, स्थानकवासी और तेरापंथ के अधिकृत विद्वान किसी एक स्थान पर मिलकर आगमों के पाठ-भेद पर और अर्थ-भेद पर गम्भीरता से विचार चर्चा कर लें, फिर आगमों का अनुवाद, संकलन और सम्पादन होना चाहिए। तभी वह कार्य युग-युगजीवी वन सकेगा।" आगमों के सम्पादन में भी कवि जी समन्वय को नहीं भूले। इस विषय में उन्होंने 'जन-प्रकाश' में एक वक्तव्य भी दिया था। वह वक्तव्य इस प्रकार है-'समवेत आगमवाचना' ___ "किसी भी समाज के विश्वास, विचार और आचार का मूल स्रोत होता है उस समाज के द्वारा मान्य किसी प्राप्त पुरुप की वाणी, शास्त्र । विना मूल के शाखा-प्रशाखाएं कैसे हो सकती हैं ? किसी भी प्रासाद के सुन्दर और उच्च शिखर के लिए उसकी नींव भी मजबूत होनी चाहिए। वैदिक परम्परा का मूल स्रोत 'वेद' है, बौद्ध परम्परा का मूल स्रोत 'पिटक' है, और जैन परम्परा का मूल प्रेरणास्रोत 'आगम' है। प्रत्येक परम्परा अपने मूल ग्रन्थों से अनुप्राणित होकर ही अपने विचार, आचार और विश्वास की दिशा स्थिर करती है, वह उसकी मूल सम्पत्ति है। जैन परम्परा में दिगम्बर-धारा को छोड़कर शेष समस्त सम्प्रदाय आगमों पर श्रद्धा रखते हैं। मूर्ति-पूजक परम्परा, स्थानकवासी परम्परा और तेरह-पंथ परम्परा एक स्वर से आगमों को मान्य करती हैं। यह वात अलग है, कि आगमों की संख्या के सम्बन्ध में कुछ भेद है, किन्तु वह एक नगण्य भेद है। श्वेताम्बर परम्परा की तीनों शाखाओं का मूल, आगम है। यद्यपि दिगम्बर-धारा भी आगमों के आचारांग आदि नामों को तो स्वीकार करती है, तथापि वह वर्तमान आगमों को मान्य नहीं करती।
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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