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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व स्याद्वादी आचार्यों का कथन है, कि वस्तु अनेक धर्मात्मक है । एक वस्तु में अनेक धर्म हैं, अनन्त धर्म हैं। किसी भी वस्तु का परिवोध करने में नय और प्रमाण की अपेक्षा रहती है। वस्तुगत किसी एक धर्म का परिबोध नय से होता है, और वस्तु-गत अनेक धर्मो का एक साथ परिवोध करना हो, तो प्रमाण से होता है। किसी भी वस्तु का परिज्ञान नय और प्रमाण के विना नहीं हो सकता। स्याद्वाद को समझने के लिए नय और प्रमाण के स्वरूप को समझना भी आवश्यक है। मैं आपसे कह रहा था, कि स्याद्वाद, समन्वयवाद और अपेक्षावाद अनेकान्त-दृष्टि-जैन-दर्शन का हृदय है। विश्व को एक अनुपम और मौलिक देन है। मत-भेद, मताग्रह और वाद-विवाद को मिटाने में अनेकान्त एक न्यायाधीश के समान है। विचार-क्षेत्र में, जिसे अनेकान्त कहा है, व्यवहार क्षेत्र में वह अहिंसा है। इस प्रकार--- "प्राचार में अहिंसा और विचार में अनेकान्त" यह जैन-धर्म की विशेषता है। क्या ही अच्छा होता, यदि आज का मानव इस अनेकान्तदृष्टि को अपने जीवन में, परिवार में, समाज में और राष्ट्र में ढाल पाता, उतार पाता?" -अमर-भारती साहित्यिक समन्वय–कवि जी का साहित्यिक समन्वय वहुत ही विस्तृत है। उन्होंने अपने समय की विभिन्न शैलियों में और विभिन्न विचारों में समन्वय साधने का पूरा प्रयत्न किया है। उनके साहित्य के विविध रूप हैं-गद्य एवं पद्य । कविता और काव्य । लेख और प्रवचन । व्याख्या और टिप्पण । भूमिकाएं और कहानियाँ । सर्वत्र आपको समन्वय वृत्ति के दर्शन होंगे। इस विषय में यहाँ पर विशेप न लिखकर 'साहित्य-साधना' अथवा 'कवि जी का कृतित्व' प्रकरण में विशेष लिखा जाएगा। स्थानकवासी जैन-कान्फ्रेंस की ओर से अनेक वर्षों से यह प्रयत्न चला आ रहा था, कि कवि जी से समस्त पागम-वाङमय का सम्पादन कराया जाए। कान्फ्रेंस ने अनेकों बार प्रस्ताव भी पास किए हैं। विनयचन्द भाई ने भी इस विषय में बहत आग्रह किया था। आज भी स्थानकवासी समाज के बहु-भाग का यही आग्रह है, कि कवि जी से आगमों का अनुवाद, संकलन और सम्पादन कराया जाए। परन्तु
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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