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________________ २४ प्रतिक्रमण सूत्र । जाती है । ' संपइ ' वर्त्तमान समय में ' जिणवर ' जिनेश्वर 'वीस' बीसे हैं, ' वरनाण ' प्रधान ज्ञान वाले - केवलज्ञानी मुणि ' मुनि' बिहुं ' दो ' कोडिहिं ' करोड़ हैं, [ और ] “ , समणह ' सामान्य श्रमण-मुनि ' कोडिसहसदुअ ' दो हजार करोड़ हैं; [ उनकी ] ' निच्चं ' सदा ' विहाणि ' प्रातः काल में ' थुणिज्जइ ' स्तुति की जाती है ॥ २ ॥ ८ 1 भावार्थ – [ तीर्थङ्कर, केवली और साधुओं की स्तुति ] सब कर्म भूमियों में पाँच भरत, पाँच ऐरवत, और पाँच महाविदेह में विचरते हुए तीर्थङ्कर अधिक से अधिक १७० पाये जाते हैं । वे सब प्रथम संहनन वाले ही होते हैं । सामान्य केवली उत्कृष्ट नव करोड़ और साधु, उत्कृष्ट नव हजार करोड - ९० अरब - पाये जाते हैं । परन्तु वर्तमान समय में उन सब की संख्या जघन्य है; इसलिये तीर्थङ्कर सिर्फ २०, केवलज्ञानी मुनि दो करोड़ और अन्य साधु दो हजार करोड़ - २० अरब - हैं । इन सब की मैं हमेशा प्रातः काल में स्तुति करता हूँ || २ || १ - जम्बूद्वीप के महाविदेह की चार, धातकी खण्ड के दो महाविदेह की आठ और पुष्करार्ध के दो महाविदेह की आठ —- इन बीस बिजयों में एक एक तीर्थकर नियम से होते ही हैं; इस कारण उनकी जघन्य संख्या बीस की मानी हुई है जो इस समय है ।
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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