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________________ पच्चक्खाण सूत्र । १७९ के द्वारा सूर्य ढक जाने से पोरिसी या साढपोरिसी का समय माल्स न होना । (४) दिग्मोह-दिशा का भ्रम होने से पोरिसी या साढपोरिसी का समय ठीक ठीक न जानना । (५) साधुवचन-- साधु के 'उग्घाडा पोरिसी' शब्द को जो कि व्याख्यान में पोरिसी पढ़ाते वक्त बोला जाता है, सुन कर अधूरे समय में ही पच्चक्खाण को पार लैना । (६) महत्तराकार । (७) सर्व-समाधिप्रत्ययाकार । [(३)-पुरिमड्ढ-प्रवड्ढ-पच्चक्खाण।] . * सूरे उग्गए, पुरिमड्ढं', अवड्ढं, मुठिसहिअं पंच्च-. क्खाइ; चउविहंपि आहारं, असणं, पाणं, खाइम, साइमं; अबस्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरह। भावार्थ-सूर्योदय से ले कर पूर्वार्ध-दो प्रहर-तक पच्च क्खाण करना पुरिमड्ढ है और तीन प्रहर तक पच्चक्खाण करना अवड्ढ है । इस के सात आगार हैं और वे पेरिसी के पच्चक्खाण के समान हैं। [४:--एगासण, बियासण तथा एकलठाने का पच्चक्खाण। * पूर्वार्धम् । अपरार्धम् । १-अवह के पच्चक्खाण में 'पुरिमड्ढे' पद और पुरिमड्ढ के पच्च. क्खाण में 'अवड्ढं' पद नहीं बोलना चाहिए। २-एकलठाने के पच्चक्खाण में 'आउंटणपसारणेणं' को छोड़ कर और सब पाऊ एगासण के पच्चक्खाण का ही बोलना चाहिए। एकलठाने में मुँह और दाहिने हाथ के सिवा अन्य किसी अङ्ग को नहीं हिलाना चाहिए और जीम कर उसी जगह चउम्विहाहार कर लेना चाहिए।
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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