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________________ १८० प्रतिक्रमण सूत्र । उग्गए मरे, नमुक्कारसहिअं, पेरिसिं,साढपोरिसिं, मुदिहसहिअं,पच्चक्खाइ । उग्गए सूरे,चउव्विहंपि आहारं-असणं, पाणं, खाइम.साइम: अन्नत्थणाभोगेणं. सहसागारणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं । विगईओ पच्चक्खाइ; अन्नत्थणामोगेणं, सहसागारेणं, लेवालेवेणं, गिहत्थसंसठेणं, उक्खित्तविवेगेणं, पडुच्चमक्खिएणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं । बियाँसणं पच्चक्खाइ। तिविहंपि आहारं-असणं, खाइम, साइमं; अन्नत्थणाभोगेणं, + विकृतीः । लेपालेपेन । गृहस्थसंसृष्टेन । उत्क्षिप्तीववेकेन । प्रतीत्य मक्षितेन । पारिष्ठापनिकाकारेण । द्वयशनम् । त्रिविधमपि । सागारिकाकारेण । आकुञ्चनप्रसारणेन । गुर्वभ्युत्थानेन । पानस्य लेपेन वा । अलेपेन वा। अच्छेन वा । बहुलेपेन वा। ससिक्थेन वा । आसक्थेन वा । १-विकार पैदा करने वाली वस्तुओं को 'विकृति' कहते हैं । विकृति भक्ष्य और अभक्ष्य दो प्रकार की है । दूध, दही, घी, तेल, गुण और पकान, ये छह भक्ष्य-विकृतियाँ हैं। मांस, मद्य, मधु और मक्खन ये चार अभक्ष्य-विकृतियाँ हैं । अभक्ष्य का तो श्रावक को सर्वथा त्याग होता ही है; भक्ष्य-विकृति भी एक या एक से अधिक यथाशक्ति इस पच्चक्खाण के द्वारा त्याग दी जाती है। २-'लेवालेवणं' से ले कर पाँच आगार मुनि के लिये हैं, गृहस्थ के लिये नहीं ३-एगासण के पच्चक्खाण में 'बियासणं' की जगह पर “एगासणं' पाठ पढ़ना चाहिए। ४-तिविहाहार में जीमने के बाद सिर्फ पानी लिया जा सकता है, इस लिये 'पाणं' नहीं कहना चाहिए। यदि दुविहाहार करना हो तो 'दुविहपि
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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