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________________ १७८ प्रतिक्रमण सूत्र । मेघ बरसने या दही मथने आदि के समय रोकने पर भी जल, ठाँउ आदि त्याग की हुई वस्तुओं का मुख में चला जाना। (३) महत्तराकार-विशेष निर्जरा आदि खास कारण . से गुरु की आज्ञा पा कर निश्चय किये हुये समय के पहले ही पच्चक्खाण पार लैना । (४) सर्वसमाधिप्रत्ययाकार--तीव्र रोग की उपशान्ति के लिये औषध आदि ग्रहण करने के निमित्त निर्धारित समय के पहले ही पच्चक्खाण पार लैना। ___ आगार का मतलब यह है कि यदि उस समय त्याग की हुई वस्तु सेवन की जाय तो भी पच्चक्खाण का भङ्ग नहीं होता । [(२)-पोरिसी-साढपोरिसी-पच्चक्खाण।] 1 उग्गए सूरे, नमुक्कारसहिअं, पोरिसिं', साढपोरिसिं, मुट्ठिसहिअं, पच्चक्खाइ । उग्गए सूरे, चउव्विहंपि आहारअसणं, पाणं, खाइम, साइमं; अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छनकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइ । भावार्थ—सूर्योदय से ले कर एक प्रहर या डेढ़ प्रहर तक चारों आहारों का नमुक्कारसाहअ पच्चक्खाण किया जाता है। यह पच्चक्खाण सात आगारों को रख कर किया जाता । (१) अनाभोग। (२)सहसाकार । (३)प्रच्छन्नकाल-मेघ, रज, ग्रहण आदि पौरुषीम् । सार्धपौरुषीम् । प्रच्छन्नकालेन । दिग्मोहेन । साधुवचनेन । १-पोरिसी के पच्चक्खाण में ' साढपोरिसिं ' पद और साढपोरिसी के पच्चक्खाण में 'पोरिसिं' पद नहीं बोलना चाहिए।
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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