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________________ भरहेसर की सज्झाय। १६३ ५२ शय्यभव-प्रभवस्वामी के चतुर्दश-पूर्व-धारी पट्टधर शिष्य । ये जाति के ब्राह्मण और प्रकृति के सरल थे। -दर्शवै० नि० गा० १४। ५३. मेघकुमार श्रेणिक की रानी धारिणी का पुत्र; जिस ने कि हाथी के भव में एक खरगोश पर परम दया की थी। यह एक बार नव दीक्षित अवस्था में सब से पीछे संथारा करने के कारण और बड़े साधुओं के आने-जाने आदि से उड़ती हुईरज के कारण संयम से ऊब गया लेकिन फिर इस ने भगवान् वीर के प्रतिशोध से स्थिर हो कर अनशन करके चारित्र की आराधना , की । ज्ञाता अध्य० १ । सती-स्त्रियाँ । १. सुलसा-भगवान् वीर की परम-श्राविका । इस ने अपने बत्तीस पुत्र एक साथ मर जाने पर भी प्रार्तध्यान नहीं किया और अपने पति नागसारथि को भी प्रार्तध्यान करने से रोक कर धर्म-प्रतिबांध दिया। -श्राव. पृ०६। २. चन्दनबाला-भगवान् वीर का दुष्कर अभिग्रह पूर्ण करने वाली एक राजकन्या और उन की सब साध्वियों में प्रधानसाध्वी। -याव०नि० गा० ५२०-५२१ । ३. मनोरमा--सुदर्शन लेठ की पतिव्रता स्त्री। ४. मदनरेखा---इस ने अपने पति युगबाहु के बड़े भाई मणिरथ के द्वारा अनेक लालच दिये जाने और अनेक संकट पड़ने पर भी पतिव्रता-धर्म अखण्डित रक्खा।। ५. दमयन्ती-राजा नल की पत्नी और विदर्भ-नरेश भीम की पुत्री। नर्मदासुन्दरी-महेश्वरदत्त की स्त्री और सहदेव की पुत्री । इस ने आर्यसुहस्ति सूरि के पास संयम ग्रहण किया और योग्यता प्राप्त कर प्रवर्तिनी-पद पाया।
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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