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________________ १६२ प्रतिक्रमण सूत्र । ४५.मूलदेव-एक राजपुत्र। यह पूर्वावस्था में तो बड़ा व्यसनी तथा नटखटी था, पर पीछे से सत्सङ्ग मिलने पर इस ने अपने चारित्र को सुधारा। ४६. प्रभवस्वामी-श्रीशय्यंभव सूरि के चतुर्दश-पूर्व-धारी गुरु । इन्हों ने चोरी का धन्धा छोड़ कर जम्बूस्वामी के पास दीक्षा ली थी। ४७. विष्णुकुमार--इस ने तपोबल से एक अवि-लब्धि प्राप्त कर उस के द्वारा एक लाख योजन का शरीर बना कर नमूची राजा का अभिमान तोड़ा। ४८. आर्द्रकुमार-माजपुत्र । इस को अभयकुमार की भेजी हुई एक जिन-प्रतिमा को देखने से जातिस्मरण-शान हुआ। इस ने एक बार दीक्षा ले कर छोड़ दी और फिर दुबारा ली और गोशालक प्रादि से धर्म-चर्चा की।-सूत्रकृताङ्ग श्रुत० २. अध्य०६। ४६. दृढप्रहारी- एक प्रसिद्ध चोर, जिस ने पहले तो किसी ब्राह्मण और उस की स्त्री आदि की घोर हत्या की लकिन पीछे उस ब्राह्मणी के तड़फते हुए गर्भ को देख कर वैराग्यपूर्वक संयम लिया और घोर तप कर के केवलज्ञान प्राप्त किया। -श्राव०नि० गा० ६५२, पृ० १३८ । ५०. श्रेयांस-श्रीबाहुबली कानाती। इस ने श्रीश्रादिनाथ को वार्षिक उपवास के बाद इतु-रस से पारणा कराया। ___-श्राव. नि० गा० ३२९, पृ० १८ । ___५१. कूरगडु मुनि-ये परम-क्षमा-धारी थे। यहाँ तक कि एक बार कफ के बीमार किसी साधु का थूक इन के श्राहार में पड़ गया पर इन्हों ने उस पर गुस्सा नहीं किया, उलटी उस की प्रशंसा और अपनी लघुता दिखलाई और अन्त में केवलज्ञान प्राप्त किया।
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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