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________________ भरसर की सज्झाय । १६१ ३७. प्रा महागिरि - श्रीस्थूलभद्र के शिष्य । ये जिनकल्पी थे नहीं, तो भी जिनकल्प का आचार पालन करते थे । - श्राव० नि० गा० १२८३, पृ० ६६८ ३८. प्रार्यरक्षित -- तोसिल पुत्र सूरि के शिष्य । इन्हों ने श्रीवज्रस्वामी से नौ पूर्व पूर्ण पढ़े और आगमों को चार अनुयांगों में विभाजित किया । - आव० नि० गा० ७७५, ५० ३६. प्रार्यसुहस्ति - श्रीस्थूलभद्र के शिष्य । ३९६. । 3 - प्राव० नि० ० गा० १२८३ । ४०. उदायन -- वीतभय नगर का नरेश। इस ने अपने भानजे . केशी को राज्य दे कर दोक्षा ली और केशी के मन्त्रियों द्वारा अनेक बार विष मिश्रित दही दिये जाने पर भी देव-सहायता से बच कर अन्त में उसी विष-मिश्रित दही से प्राण त्यागे । --श्राव० नि० गा० १२८५ ॥ ४१. मनकपुत्र - श्रीशय्यंभव सूरि का पुत्र तथा शिष्य । इस के लिये श्रीशय्यंभव सूरि ने दशवैकालिक सूत्र का उद्धार किया । - दशवें० नि० गा० १४ । ४२. कालिकाचार्य - ये तीन हुए। एक ने अपने हठी भानजे दत्त को सच २ बात कह कर उस की मूल दिखाई । दूसरे ने भादौं शुक्ल चतुर्थी के दिन सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करने की प्रथा शुरू की । तीसरे ने गर्दभिल्ल राजा को सख्त सजा दे कर उस के हाथ से परम-साध्वी अपनी बहिन को छुड़ाया और प्रायश्चित्त ग्रहण कर संयम का प्राराधन किया । 1 ★ ४३-४४. शाम्ब, प्रद्युम्न --इन में से पहिला श्रीकृष्ण की स्त्री · जम्बूर्वती का धर्मप्रिय पुत्र और दूसरा रुक्मिणी का परम सुन्दर पुत्र । - अन्तकृत् वग ४, अभ्य० ६-७, पृ० । ॐ Star
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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