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________________ १६० प्रतिक्रमण सूत्र । ३०. वङ्कचूल-राजपुत्र । इस ने लूट-खसोट को काम करते हुए भी लिये हुए नियमों-अज्ञातफल तथा कौएका मांस न ख.ना इत्यादि व्रतों-का दृढता-पूर्वक पालन किया। . ३१. गजसुकुमाल-कृष्ण-वासुदेव का परम-तमा-शील छोटा भाई । यह अपने ससुर सोमिल के द्वाग सिर पर जलते हुए अङ्गारे रक्खे जाने पर भी काउस्सग्ग ध्यान में स्थिर रहा और अन्त में अन्तकृत्केवली हुया । ---अन्तकृत वर्ग ३, अध्ययन ९ । ३२. अवन्तीसुकुमाल-श्रेष्ठि-भार्या सुभद्रा का पुत्र ! इस ने 'नलिनीगुल्म-अध्ययन' मुन कर जातिस्मरण पाया; बत्तीस स्त्रियों को छोड़ कर सुहस्ति सूरि के पास दीक्षा ली और शृगालों के द्वारा सारा शरीर नौंव लिये जाने पर भी कारस्लग खण्डित नहीं किया । -प्रार० पृ०६७। ३३. धन्यकुमार-शालिभद्र का बहनोई । इस ने एक साथ पाठों स्त्रियों का त्याग किया। ३४. इलाचीपुत्र-इस ने श्रेष्टि-पुत्र हो कर भी नटिनी के मोह से नट का पेशा सीखा और अन्त में नाच करते २ केवलज्ञान प्राप्त किया ।-प्राव० पृ०२।। ३५. चिलातीपुत्र---यह एक तपस्वी मुनि से 'उपशम, विवेक और संवर' ये तीन पद नुन कर उन की अर्थ-विचारणा में ऐसा तल्लीन हुया कि चींटियों के द्वारा पूर्णतया सताये जाने पर भी शुम ध्यान से चलित न हुआ और ढाई दिन-रात में स्वर्ग को प्राप्त हुआ। इस ने पहिले चौरपल्ली का नायक बन कर सुमसुमा नामक एक कन्या का हरण किया था और उसका सिर तक काट डाला था। -श्राव०नि० गा०८७२-८७५,पृ०२५.१२ तथा शातायध्य०१८॥ ३६. युगबाहु मुनि-इन्हों ने पूर्व तथा वर्तमान जन्म में शानपञ्चमी का श्राराधन कर के सिद्धि पाई ।
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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