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________________ ८८० सुत्तागमे [णिसीहसुत्तं गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे पुरओ गच्छमाणे पिट्ठओ रीयमाणे ओहयमणसंकप्पे चिंतासोयसागरसंपविढे करयलपल्हत्थमुहे अज्झाणोवगए विहारं वा करेइ सज्झायं वा करेइ असणं वा ४ आहारेइ उच्चारं वा पासवणं वा परिट्ठवेइ अण्णयरं वा अणारियं पिहुणं अस्समणपाउग्गं कहं कहेइ कहेंतं वा साइजइ ॥ ५६४ ॥ जे भिक्खू णायगं वा अणायगं वा उवासयं वा अणुवासयं वा अंतो उवस्सयस्स अद्धं वा राई कसिणं वा राई संवसावेइ (तं न पडियाइक्खइ तं पडुच्च निक्खमइ वा पविसइ वा) संवसावेंतं वा साइजइ ॥ ५६५ ॥ जे भिक्खू णायगं वा अणायगं वा उवासयं वा अणुवासयं वा अंतो उवस्सयस्स अद्धं वा राई कसिणं वा राई संवसावेइ तं पडुच्च निक्खमइ वा पविसइ वा निक्खमंतं वा पविसंतं वा साइज्जइ ॥ ५६६ ॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं संवायमहेसु वा पिंडमहेसु वा जाव असणं वा ४ पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ ॥ ५६७ ॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं उत्तरसालंसि वा उत्तरगिहंसि वा रीयमाणं असणं वा ४ पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइजइ ॥ ५६८ ॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं यसालागयाण वा गयसालागयाण वा मंतसालागयाण चा गुज्झसालागयाण वा रहस्ससालागयाण वा मेहुणसालागयाण वा असणं वा ४ पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइजइ ॥ ५६९ ॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं सन्निहिसंनिचयाओ खीरं वा दहिं वा णवणीयं वा सप्पिं वा गुलं वा खंडं वा सक्करं वा मच्छंडियं वा अण्णयरं वा भोयणजाणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइजइ ॥ ५७० ॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं उस्सट्ठपिंडं वा संसठ्ठपिंडं वा अणाहपिंडं वा किविणपिंडं वा वणीमगपिंडं वा पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइजइ। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं ॥ ५७१ ॥ णिसीहऽज्झयणे अट्ठमो उद्देसो समत्तो॥८॥ णवमो उद्देसो जे भिक्खू रायपिंडं गेण्हइ गेण्हतं वा साइजइ ॥ ५७२ ॥ जे भिक्खू रायपिंडं भुंजइ भुंजंतं वा साइज्जइ ॥ ५७३ ॥ जे भिक्खू रायंतेउरं पविसइ पविसंतं वा साइजइ ॥ ५७४ ॥ जे भिक्खू रायंतेपुरियं वदेजा-'आउसो ! रायंतेपुरिए णो खलु अम्हं कप्पइ रायंतेपुरं णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, इमम्हं तुमं पडिग्गहगं गहाय रायंतेपुराओ असणं वा ४ अभिहडं आहढ दलयाहि' जो तं एवं वयइ वयंतं वा साइजइ ॥ ५७५ ॥ जे भिक्खू णो वएजा, रायंतेपुरिया वएजा-'आउसंतो ! समणा णो खलु तुझं कप्पइ रायंतेपुरं णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, आहरेयं
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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