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________________ उ० ९ चाउम्मासियमणुग्घाइयं ] सुत्तागमे पडिग्गहगं जाए अम्हं रायंतेपुराओ असणं वा ४ अभिहडं आहख दलयामि' जो तं एवं वयंतं पडिसुणेइ पडिसुणेतं वा साइजइ ॥५७६ ॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं दुवारियभत्तं वा पसुभत्तं वा भयगभत्तं वा बलभत्तं वा कयगभत्तं वा हयभत्तं वा गयभत्तं वा कंतारभत्तं वा दुब्भिक्खभत्तं वा दमगभत्तं वा गिलाणभत्तं वा वद्दलियाभत्तं वा पाहुणभत्तं वा पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ ॥ ५७७ ॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं इमाइं छद्दोसाययणाई अजाणि(य)त्ता अपुच्छिय अगवेसिय परं चउरायपंचरायाओ गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए णिक्खमइ वा पविसइ वा णिक्खमंतं वा पविसंतं वा साइजइ, तंजहाकोट्ठागारसालाणि वा भंडागारसालाणि वा पाणसालाणि वा खीरसालाणि वा गंजसालाणि वा महाणससालाणि वा ॥ ५७८ ॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं अइगच्छमाणाण वा णिग्गच्छमाणाण वा पयमवि चक्खुदंसणपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेंतं वा साइजइ ॥५७९ ॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं इत्थीओ सव्वालंकारविभूसियाओ पयमवि चक्खुदंसणपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेंतं वा साइज्जइ ॥ ५८० ॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं मंस(क)खाया[f]ण वा मच्छखायाण वा छविखायाण वा बहिया णिग्गयाणं असणं वा ४ पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइजइ ॥ ५८१॥जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं अण्णयरं उववूहणियं समीहियं पेहाए तीसे परिसाए अणुट्टियाए अभिण्णाए अव्वोच्छिण्णाए जो तमण्णं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ ॥५८२ ॥ अह पुण एवं जाणेज्ज ‘इहज रायखत्तिए परिवुसिए' जे भिक्खू ताए गिहाए ताए पएसाए ताए उवासंतराए विहारं वा करेइ सज्झायं वा करेइ असणं वा ४ आहारेइ उच्चारं वा पासवणं वा परिट्ठवेइ अण्णयरं वा अणारियं पिहुणं अस्समणपाउग्गं कहं कहेइ कहेंतं वा साइजइ ॥ ५८३ ॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं बहिया जत्तासं(पट्ठि)ठियाणं असणं वा ४ पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइजइ ॥ ५८४ ॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं बहिया जत्तापडिणियत्ताणं असणं वा ४ पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइजइ ॥ ५८५ ॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं णइजत्ता(सं)पट्ठियाणं असणं वा ४ पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइजइ ॥५८६ ॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं णइजत्तापडिणियत्ताणं असणं वा ४ पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ ॥ ५८७ ॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं गिरिजत्तापट्ठियाणं असणं वा ४ पडिग्गा ५६ सुत्ता
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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