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________________ जैनधर्मस्य विस्तार, कृतवान् जगतीतले ॥ श्रीमालपुराण ॥ हस्ते पात्रं दधानाच, तुंडे वस्त्रस्य धारकाः। मलिनान्येव वासांसि, धारयन्तोऽल्पभाषिणः ॥ २५ ॥ शिवपु० अ० २१ ॥ श्रीमालपुराणके ७३ वें अध्यायका ३३ वां श्लोक भी इससे मिलता जुलता है। बुद्धके कई ग्रंथोंमें ना(थ-ट)तपुत्त-महावीरका नाम आता है परन्तु सूत्रोंमें बुद्धका नाम नहीं है । कारण जैनधर्म बुद्ध धर्मसे प्राचीन है । न्यायदर्शनम १ आगमोंके अनुसार न्यायसूत्र, विग्रहव्यावर्तनी, उपायहृदय (बौद्ध) भी चार प्रमाण मानते हैं। २ पूर्ववत्के उदाहरणमें 'माया पुत्तं जहा णटुं, जुवाणं पुणरागयं । काइ पञ्चभिजाणेजा, पुव्वलिंगेण केणइ ॥ तंजहा-खत्तेण वा वण्णेण वा लंछणेण वा मसेण वा तिलएण वा' (अनुयोगद्वार ) जैसा ही उदाहरण उपायहृदय में भी मिलता है । यथा-षडंगुलिं सपिडगमूर्धानं बालं दृष्ट्वा पश्चादृद्धं बहुश्रुतं देवदत्तं दृष्ट्वा. षडंगुलिम्मरणात् सोऽयमिति पूर्ववत् । ३ 'जहा एगो पुरिसो तहा बहवे पुरिसा' (अनुयोग.) ऐसा ही उदाहरण माठर और गौडपादने भी दिया है, यथा-पुष्पिताम्रदर्शनात् , अन्यत्र पुष्पिता आम्रा इति । इत्यादि। वैज्ञानिकविज्ञान द्वारा स्वीकृत आगमिक सिद्धान्त १ आगमोंमें कहा है कि शब्द ( sound ) जड़ मूर्तिमान् और लोकके अन्त तक प्रवाहित होने वाला है, आजके विज्ञानने भी ग्रामोफ़ोन और रेडियो का आविष्कार करके यह सिद्ध कर दिया है। __ २ आचारांगसूत्रमें वनस्पतिमें जीवोंका अस्तित्व बताने के लिए निम्न लक्षण दिए हैं ‘जाइधम्मयं' उत्पन्न होनेवाला है, 'बुद्धिधम्मयं' इसके शरीरमें वृद्धि होती है, 'चित्तमंतयं' चैतन्य है, 'छिन्नं मिलाइ' काटने पर सूख जाता है, 'आहारगं' आहार भी ग्रहण करता है, 'अणिच्चयं' 'असासयं' इसका शरीर भी अनित्य और अशाश्वत है, 'चओवचइयं' इसके शरीरमें भी घट बढ़ होती रहती है। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीशचंद्र वसु ने अपने परीक्षणों द्वारा उपरोक्त सब लक्षण सिद्ध किए हैं जिसे समस्त वैज्ञानिक लोग मान चुके हैं। ३ आगमोंने समस्त द्रव्योंको अनादि माना है। इसी बातको प्रसिद्ध प्राणीशास्त्र
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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