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________________ सुत्तागमे [ दसासुयक्खंधो पुट्ठस्स वागरणी ॥ १६० ॥ मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स० कम्पइ तओ उवस्सया पडिलेहित्तए, तंजहा-अहे आरामगिहंसि वा, अहे वियडगिहंसि वा, अहे रुक्खमूलगिहंसि वा । मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स० कप्पइ तओ उवस्सया अणुण्णवेत्तए, तं०-अहे आरामगिहें, अहे वियडगिहं, अहे रुक्खमूलगिहं । मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स० कप्पइ तओ उवस्सया उवाइ(णावि)णित्तए, तं चेव ॥ १६१॥ मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स० कप्पइ तओ संथारगा पडिलेहित्तए, तंजहा-पुढवीसिलं वा, कट्ठसिलं वा, अहासंथडमेव । मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स० कप्पइ तओ संथारगा अणुण्णवेत्तए, तं चेव । मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स० कप्पइ तओ संथारगा उवाइणित्तए, तं चेव ॥ १६२ ॥ मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स० इत्थी वा पुरिसे वा उवस्सयं उवागच्छेजा, से इत्थी वा पुरिसे वा नो से कप्पइ तं पडुच्च निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ १६३ ॥ मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स० केइ उवस्सयं अगणिकाएणं झामेजा नो से कप्पइ तं पडुच्च निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, तत्थ णं केइ बाहाए गहा[ए]य आगसेज्जा नो से कप्पइ तं अवलंबित्तए वा पलंबित्तए वा, कप्पइ से अहारियं रीइ[रिय]त्तए॥ १६४ ॥ मासियं णं भिक्खुपडिम पडिवन्नस्स० पायंसि खाणू वा कंटए वा हीरए वा सक्करए वा अणुपविसेज्जा नो से कप्पइ नीहरित्तए वा विसोहित्तएं वा, कम्पइ से अहारियं रीइत्तए॥ १६५ ॥ मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स जाव अच्छिसि पा[णाणि]णे वा बी याणि]ए वा रए वा परियावजेजा, नो से कप्पइ नीहरित्तए वा विसोहित्तए वा, कप्पइ से अहारियं रीइत्तए ॥ १६६ ॥ मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स० जत्थेव सूरिए अत्थमेजा तत्थ एव जलं(सुकजलासयं)सि वा थलंसि वा दुग्गंसि वा निन्नंसि वा पव्वयंसि वा विसमंसि वा गड्डाए वा दरीए वा कप्पइ से तं रयणी तत्थेव, उवायणावित्तए नो से कप्पइ पयमवि गमित्तए, कप्पइ से कलं पाउप्पभाए रयणीए जाव जलंते पाईणाभिमुहस्स वा दाहिणाभिमुहस्स वा पडीणाभिमुहस्स वा उत्तराभिमुहस्स वा अहारियं रीइत्तए॥ १६७ ॥ मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स णो से कप्पइ अणंतरहियाए पुढवीए निदाइत्तए वा पयलाइत्तए वा, केवली बूया आयाणमेयं, से तत्थ निद्दायमाणे वा पयलायमाणे वा हत्थेहिं भूमिं परामुसेजा, अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए णिक्खमित्तए वा, उच्चारपासवणेणं उ[प्पा]ब्बाहिजा नो से कप्पइ उगिण्हित्तए [वा], कप्पइ से पुव्वपडिलेहिए थंडिले उच्चारपासवणं परिठवित्तए, तमेव उवस्सयं आगम्म अहाविहि ठाणं ठाइत्तए ॥ १६८ ॥ मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स० नो कप्पइ ससरक्खेणं काएणं गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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