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________________ द० ७ अहोराइंदिया भिक्खुपडिमा सुत्तागमे ९३३ वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, अह पुण एवं जाणेज्जा ससरक्खे से अत्ताए वा जल्लत्ताए वा मलत्ताए वा पंकत्ताए वा विद्धत्थे से कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ १६९ ॥ मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स० नो कप्पइ सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा हत्थाणि वा पायाणि वा दंताणि वा अच्छीणि वा मुहं वा उच्छोलित्तए वा पधोइत्तए वा, णण्णत्थ लेवालेवेण वा भत्तमासेण वा ॥ १७० ॥ मासियं णं भिक्खुपडिम पडिवन्नस्स० नो कप्पइ आसस्स वा हत्थिस्स वा गोणस्स वा महिसस्स वा कोलसुणगस्स वा सुणस्स वा वग्धस्स वा दुट्ठस्स वा आवयमाणस्स पयमवि पच्चोसक्कित्तए, अदुट्ठस्स आवयमाणस्स कप्पइ जुगमित्तं पच्चोसक्त्तिए ॥ १७१ ॥ मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स० नो कप्पइ छायाओ सीयंति उण्हं इयत्तए, उण्हाओ उण्हति छायं इयत्तए । जं जत्थ जया सिया तं तत्थ तया अहियासए ॥ १७२ ॥ एवं खलु मासियं भिक्खुपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातचं सम्मं काएणं फासित्ता पालित्ता सोहित्ता तीरित्ता किट्टित्ता आराहइत्ता आणाए अणुपा(ले)लित्ता भवइ ॥१॥ १७३ ॥ दोमासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स० निच्चं वोसट्ठकाए जाव दो दत्तीओ ॥ २॥ १७४ ॥ तिमासियं तिण्णि दत्तीओ ॥ ३ ॥ १७५ ॥ चउमासियं चत्तारि दत्तीओ ॥४॥ १७६ ॥ पंचमासियं पंच दत्तीओ ॥५॥ १७७ ॥ छमासियं छ दत्तीओ ॥ ६॥ १७८ ॥ सत्तमासियं सत्त दत्तीओ ॥ ७ ॥ जेत्तिया मासिया तेत्तिया दत्तीओ ॥ १७९ ॥ पढमं सत्तराइंदियं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स निच्चं वोसट्टकाए जाव अहियासेइ, कप्पइ से चउत्थेणं भत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा उत्ताणगस्स वा पासिल्लगस्स वा नेसज्जियस्स वा ठाणं ठाइत्तए, तत्थ दिव्या वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा उवसग्गा समुप्पज्जेजा तेणं उवसग्गा पयलिन वा पवडेज वा णो से कप्पइ पयलित्तए वा पवडित्तए वा, तत्थ णं उच्चारपासवणं उब्वाहिज्जा णो से कप्पइ उच्चारपासवणं उगिण्हित्तए, कप्पइ से पुव्वपडिलेहियंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिठवित्तए, अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए, एवं खलु एसा पढमा सत्तराइंदिया भिक्खुपडिमा अहासु[य]त्तं जाव आणाए अणुपालित्ता भवइ ॥ ८॥१८०॥ एवं दोच्चा सत्तराइंदिया [या]वि नवरं दंडा[य]इयस्स वा लग[डसाइडाइयस्स वा उक्कुडुयस्स वा ठाणं ठाइत्तए, सेसं तं चेव जाव अणुपालित्ता भवइ ॥९॥१८१॥ एवं तच्चा सत्तराइंदियावि, नवरं गोदोहियाए वा वीरासणियस्स वा अंबखुजस्स वा ठाणं ठाइत्तए तं चेव जाव अणुपालित्ता भवइ ॥१०॥१८२॥ एवं अहोराइंदियावि, नवरं छटेणं भत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए
SR No.010591
Book TitleSuttagame 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year1954
Total Pages1300
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_aupapatik, agam_rajprashniya, agam_jivajivabhigam, agam_pragyapana, agam_suryapragnapti, agam_chandrapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, & agam_ni
File Size93 MB
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