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________________ सुत्तागमे [ठाणे आहाकम्मियं वा जाव हरियभोयणं वा पडिसेहिस्सइ, से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वइए सपडिक्कमणे अचेलए धम्मे प० एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वइयं जाव अचेलगं धम्मं पण्णवेहिती, से जहाणामए अज्जो ! मए पंचाणुव्वइए सत्तसिक्खावइए दुवालसविहे सावगधम्मे प० एवामेव महापउमेवि अरहा पंचाणुव्वइयं जाव सावगधम्मं पण्णवेस्सइ, से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं सेज्जायरपिंडेइ वा रायपिंडेइ वा पडिसिद्ध एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं सेज्जायरपिंडेइ वा जाव पडिसेहिस्सइ, से जहाणामए अज्जो ! मम णव गणा इगारस गणहरा, एवामेव महापउमस्स वि अरहओ णव गणा इगारस गणहरा भविस्संति । से जहाणामए अज्जो ! अहं तीसं वासाइं अगारवासमज्झे वसित्ता मुंडे भवित्ता जाव पव्वइए दुवालस संवच्छराइं तेरस पक्खा छउमत्थपरियागं पाउणित्ता तेरसहिं पक्खेहिं ऊणगाई तीसं वासाइं केवलिपरियागं पाउणित्ता वायालीसं वासाइं सामग्णपरियागं पाउणित्ता वावत्तरि वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिस्सं जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सं, एवामेव महापउमेवि अरहा तीसं वासाइं अगारवासमझे वसित्ता जाव पन्विहिति दुवालस संवच्छराइं जाव बावत्तरिवासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिहिती जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहिती, "जंसीलसमायारो अरहा तित्थंकरो महावीरो, तस्सीलसमायारो होइ उ अरहा महापउमे ॥ ९१६ ॥ महापउसचरिअं समत्तं ॥ णव णक्खत्ता चंदस्स पच्छंभागा प० तं० अभिई सवणो धणिछा रेवइ अस्सिणि सग्गसिर पूसो, हत्थो चित्ता य तहा पच्छंभागा णव हवंति ॥ ९१७ ॥ आणयपाणयआरणच्चुएसु कप्पेसु विमाणा णव जोयणसयाई उर्दू उच्चत्तेणं प० ॥९१८॥ विमलवाहणे णं कुलगरे णव धणुसयाइं उर्दू उच्चत्तेणं होत्था ॥ ९१९ ॥ उसमे णं अरहा कोसलिए णं इमीसे ओसप्पिणीए णवहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं विईकंताहिं तित्थे पवत्तिए ॥ ९२० ॥ घणदंतलठ्ठदंतगूढदंतसुद्धदंतदीवा णं दीवा णवणवजोयणसयाई आयामविक्खंभेणं प० ॥ ९२१ ॥ सुक्कस्स णं महागहस्स णव वीहीओ प० त०-हयवीही गयवीही णागवीही वसहवीही गोवीही उरगवीही अयवीही मियवीही वेसाणरवीही ॥ ९२२ ॥ नवविहे नोकसायवेयणिजे कम्मे प० तं०इत्थिवेए पुरिसवेए णपुंसगवेए हासे रई अरई भये सोगे दुगुंछे ॥ ९२३ ॥ चउरिदियाणं णव जाइकुलकोडीजोणिपमुहसयसहस्सा प० ॥ ९२४ ॥ भुयगपरिसप्पथलयरपचिंदियतिरिक्खजोणियाणं नवजाइकुलकोडीजोणिपमुहसयसहस्सा प० ॥९२५।। जीवा णं णवठ्ठाणनिवत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा ३ ॥ ९२६ ॥ पुढवि
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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