SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुत्तागमे [सूयगई सुयं च सम्म पडिवाययन्ति ॥ २६ ॥ ६०५ ॥ से सुद्धसुत्ते उवहाणवं च धम्म च जे विन्दइ तत्थ तत्थ। आएज्जवक्ने कुसले वियत्ते स अरिहइ भासिउं तं समाहि ॥ २७ ॥ ६०६ ॥ ति बेमि ॥ गन्थज्झयणं चोदहमं ॥ . आयाणियज्झयणे पण्णरहमे - जमईअं पडुप्पन्नं आगसिस्सं च नायओ । सव्वं मन्नइ तं ताई दसणावरणन्तए ॥१॥ ६०७ ॥ अन्तए वितिगिच्छाए से जाणइ अणेलिसं । अणेलिसस्स अक्खाया न से होइ तहिं तहि ॥ २ ॥ ६०८ ॥ तहि तहिं सुयक्खायं से य सच्चे सुआहिए। सया सच्चेण संपन्ने मेत्तिं भूएहि कप्पए ॥ ३ ॥ ६०९ ॥ भूएहि न विरुज्झेजा एस धम्मे सीमओ। वुसिमं जगं परिनाय अस्सिं जीवियभावणा ॥ ४ ॥ ६१० ॥ भावणाजोगसुद्धप्पा जले नावा व आहिया। नावा व तीरसंपन्ना सव्वदुक्खा तिउदृइ ॥ ५॥ ६११ ॥ तिउट्टई उ मेहावी जाणं लोगसि पावगं । तुट्टन्ति पावकम्माणि नवं कम्ममकुव्वओ।॥ ६ ॥ ६१२ ॥ अकुव्वओ नवं नत्थि कम्मं नाम विजाणइ । विन्नाय से महावीरे जेण जाई न मिजई ॥ ७ ॥ ६१३ ॥ न मिजई महावीरे जस्स नत्थि पुरेकडं । वाउ व्व जालमचेइ पिया लोगंसि इत्थियो ॥ ८॥६१४ ॥ इथियो जे न सेवन्ति आइमोक्खा हु ते जणा। ते जणा बन्धणुम्मुक्का नावकंखन्ति जीवियं ॥ ९ ॥ ६१५ ॥ जीवियं पिट्ठओ किच्चा अन्तं पावन्ति कम्मुणं । कम्मुणा संमुहीभूया जे मग्गमणुसासई ॥ १० ॥ ६१६ ॥ अणुसासणं पुढो पाणी वसुमं पूयणासु ते । अणासए जए दन्ते दढे आरयमेहुणे ॥ ११ ॥ ६१७ ॥ नीवारे व न लीएजा छिन्नसोए अणाविले । अणाइले सया दन्ते संधि पत्ते अणेलिसं ॥१२॥ ॥६१८॥ अणेलिसस्स खेयने न विरुज्झेज केणइ । मणसा वयसा चेव कायसा चेव चक्खुमं ॥ १३ ॥ ६१९ ॥ से हु चक्खू मणुस्साणं जे कंखाए य अन्तए । अन्तेण खुरो वहई चकं अन्तेण लोट्टई ॥ १४ ॥ ६२० ॥ अन्ताणि धीरा सेवन्ति तेण अन्तकरा इह । इह माणुस्सएं ठाणे धम्ममाराहिलं नरा ॥ १५ ॥ ६२१ ॥ निहि यहा व देवा वा उत्तरीए इयं सुयं । सुयं च मेयमेगेसिं अमगुस्सेसु नो तहा ॥१६॥ ॥ ६२२ ॥ अन्तं करन्ति दुक्खाणं इहमेगेसिमाहियं । आघायं पुण एगेसिं दुल्लभेऽयं समुस्सए ॥ १७ ॥ ६२३ ॥ इओ विद्धंसमाणस्स पुणो संवोहि दुलहा । दुल्लहाओ तहचाओ जे धम्मटुं वियागरे ॥ १८ ॥ ६२४ ॥ जे धम्मं सुद्धमक्खन्ति पडिपुण्णमणेलिसं । अणेलिसस्स जं ठाणं तस्स जम्मकहा कओ ॥ १९ ॥ ६२५ ॥ कओ कयाइ मेहावी उप्पजन्ति तहागया। तहागया अप्पडिन्ना चक्खू लोगस्सणुत्तरा
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy