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________________ १ सु० भ० १४] सुत्तागमे याए घडदासिए वा अगारिणं वा समयाणुसिढे ॥ ८ ॥ ५८७ ॥ न तेसु कुज्झे न य पव्वहेजा न यावि किंची फरसं वएज्जा । तहा करिस्सं ति पडिस्सुणेज्ना सेयं खु मेयं न पमाय कुज्जा ॥९॥५८८ ॥ वर्णसि मूढस्स जहा अमूढा मग्गाणुसासन्ति हियं पयाणं । तेणेव मज्झं इणमेव सेयं जं मे बुहा समणुसासयन्ति ॥१०॥५८९॥ अह तेण मूढेण अमूढगस्स कायव्व पूया सविसेसजुत्ता । एओवमं तत्थ उदाहु वीरे अणुगम्म अत्यं उवणेइ सम्मं ॥ ११॥ ५९० ॥ नेया जहा अन्धकारंसि राओ मग्गं न जाणाइ अपस्समाणे । से सूरियस्स अब्भुग्गमेणं मग्गं वियाणाइ पगासियंसि ॥ १२ ॥ ५९१ ॥ एवं तु सेहे वि अपुट्ठधम्मे धम्म न जाणाइ ,अबुज्झमाणे। से कोविए जिणवयणेण पच्छा सूरोदए पासइ चक्खुणेव ॥ १३ ॥ ५९२ ॥ उड्डे अहे यं तिरियं दिसासु तसा य जे थावर जे य पाणा। सया जए तेसु परिन्वएजा मणप्पओसं अविकम्पमाणे ॥ १४ ॥ ५९३ ॥ कालेण पुच्छे समियं पयासु आइक्खमाणो दवियस्स वित्तं । तं सोयकारी य पुढो पवेसे संखा इमं केवलियं समाहि ॥ १५ ॥ ५९४ ॥ अस्सिं सुठिचा तिविहेण तायी एएसु या सन्ति निरोहमाहु । ते एवमक्खन्ति तिलोगदंसी न भुजमेयन्ति पमायसंगं ॥१६॥ ५९५ ॥ निसम्म से भिक्खु समीहियटुं पडिभाणवं होइ विसारए य । आयाणअट्ठी चोदाणमोणं उवेच्च सुद्धेण उवेइ मोक्खं ॥ १७ ॥ ५९६ ॥ संखाइ धम्मं च वियागरन्ति बुद्धा हु ते अन्तकरा भवन्ति । ते पारगा दोण्ह वि मोयणाए संसोधियं पण्हमुदाहरन्ति ॥ १८ ॥ ५९७ ॥ नो छायए नो वि य लसएन्जा माणं न सेवेज पगासणं च । न यावि पन्ने परिहास कुज्जा न याऽऽसियावाय वियागरेजा ॥ १९ ॥ ५९८ ॥, भूयाभिसंकाइ दुगुञ्छमाणे न निव्वहे' मन्तपएण गोयं । न किंचिमिच्छे मणुए पयासुं असाहुधम्माणि न संवएज्जा ॥ २० ॥ ५९९ ॥ हासं पि नो संधइ पावधम्मे ओए तहीयं फरुसं वियाणे । नो तुच्छए नो य विकंथइजा अणाइले या अकसाइ भिक्खू ॥ २१ ॥ ६०० ॥ संकेज याऽसंकियभाव भिक्खू विभजवायं च वियागरेजा। भासादुयं धम्मसमुट्ठिएहिं वियागरेजा समयासुपन्ने ॥ २२ ॥ ६०१ ॥ अणुगच्छमाणे वितहं विजाणे तहा तहा साहु अकक्कसेणं । न कत्थई भास विहिंसइज्जा निरुद्धगं वावि न दीहइजा ॥ २३ ॥ ६०२॥ समालवेज्जा पडिपुण्णभासी निसामिया समियाअट्ठदंसी। आणाइ सुद्धं वयणं भिउजे अभिसंधए पावावग भिक्खू ॥ २४ ॥६०३ ॥ अहावुइयाई सुसिक्खएज्जा जइज्जया नाइवेले वएज्जा । से दिट्ठिमं दिट्टिन लूसएज्जा से जाणइ भासिउं तं समाहि ॥२५॥६०४॥ अल्सए नो पच्छन्नभासी नो सुत्तमत्थं च करेज ताई । सत्थारभत्ती अणुवीइ वायं
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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