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________________ शुत्तागमे सूयगई १२८ य अगागएहि नो किरियमाहंसु अकिरियवाई ॥ ४ ॥ ५३८ ॥ संमिस्सभावं च गिरा गहीए से मुम्मुई होइ अणाणुवाई । इमं दुपक्खं इममेगपक्खं आहंमु छलाययगं च कम्मं ॥५॥ ५३९ ॥ ते एवमक्खन्ति अवुज्जमाणा विरूवरूवाणि अकिरियवाई । जे मायइत्ता वहवे मणूसा भमन्ति संसारमणोवदग्गं ॥ ६ ॥ ॥ ५४० ॥ नाइचो उदेइ न अत्यमेइ न चन्दिमा वड्डइ हायई वा । सलिला न सन्दन्ति न वन्ति वाया वञ्झो नियओ कसिणे हु लोए ॥ ७ ॥ ५४१ ॥ जहा हि अन्धे सह जोइणा वि रूवाइँ नो पस्सइ हीणनेत्ते । सन्तं पि ते एवमकिरियवाई किरियं न पस्सन्ति निरुद्धपन्ना ॥८॥ ५४२ ॥ संवच्छरं सुविगं लक्खणं च निमित्तदेहं च उप्पाइयं च । अट्ठङ्गमेयं वहवे अहित्ता लोगंसि जाणन्ति अणागयाई ॥ ९॥ ५४३ ॥ केई निमित्ता तहिया भवन्ति केसिंचि तं विप्पडिएइ नागं । ते विजभावं अणहिजमाणा आहंसु विजा परिमोक्खमेव ॥ १० ॥ ५४४ ॥ ते एवमक्खन्ति समिच लोग तहा तहा समणा माहणा य । सयंकडं नन्नकडं च दुक्खं आहंसु विजाचरणं पमोक्खं ॥ ११ ॥ ५४५ ॥ ते चक्खु लोगंसिह नायगा उ मग्गाणुसासन्ति हियं पयाणं । तहा तहा सासयमाहु लोए जंसी पया माणव संपगाढा ॥ १२॥ ५४६ ॥ जे रक्खसा वा जमलोइया वा जे वा सुरा गंधव्वा य काया । आगासगामी य पुढोसिया जे पुगो पुणो विप्परियासुवेन्ति ॥ १३ ॥ ॥ ५४७ ॥ जमाह ओहं सलिलं अपारगं जाणाहि णं भवगहणं दुमोक्खं । जंसी विसण्णा विसयगणाहिं दुहओ वि लोयं अणुसंचरन्ति ॥ १४ ॥ ५४८ ॥ न कम्मुणा कम्म खवेन्ति बाला अक्रम्मुणा कम्म खवेन्ति धीरा । मेहाविगो लोभभयावईया संतोसिगो नो पकरेन्ति पावं ॥ १५ ॥ ५४९ ॥ ते तीयउप्पन्नमणागयाइं लोगस्स जाणन्ति तहागयाइं। नेयारो अन्नेसि अणन्ननेया बुद्धा हु ते अन्तकडा भवन्ति ॥ १६ ॥ ५५० ॥ ते नेव कुव्वन्ति न कारवेन्ति भूयाहिसंकाइ दुगुञ्छमाणा। सया जया विप्पणमन्ति धीरा विण्णत्ति धीरा य हवन्ति एग ॥ १७ ॥ ५५१ ॥ डहरे य पाणे बुड्ढे य पाणे ते अत्तओ पासइ सव्वलोए । उव्वेहई लोगमिगं महन्तं बुद्धपमत्तेसु परिव्वएजा ॥ १८ ॥ ५५२ ॥ जे आया परओ वा वि नच्चा अलमप्पणो होन्ति अलं परेसि । तं जोइभूयं च सयावसेजा जे पाउकुजा अणुवीइ धम्मं ॥ १९ ॥ ५५३ ॥ अत्ताण जो जाणइ जो य लोग गई च जो जाणइ नागई च । जो सासयं जाण असासयं च जाइं च मरणं च जगोववायं ॥ २० ॥ ५५४ ॥ अहो वि सत्ताण विउदृणं च जो आसवं जाणइ संवरं च । दुक्खं च जो जाणइ निजरं च सो भासिउमरिहइ किरियवायं ॥ २१ ॥
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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