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________________ १२६ सुत्तागमे [ सूयगडं मृग्गज्झयणे एयारहमे कयरे मग्गे अक्खाए माहणेगं सईमया । जं मग्गं उज्जु पावित्ता ओहं तरइ दुत्तरं ॥ १॥ ४९७ ॥ जं सरगं गुत्तरं सुद्धं सव्वदुक्खविमोक्खणं । जाणासि णं जहा भिक्खू तं णो बूहि महामुणी ॥ २ ॥ ४९८ ॥ जइ णो केइ पुच्छिज्जा देवा अदुव माणुसा । तेसि तु कयरं मग्गं आइक्खेज कहाहि णो ॥ ३ ॥ ४९९ ॥ जइ वो केइ पुच्छिज्जा देवा अदुव माणुसा। तेसिमं पडिसाहेजा मग्गसारं सुणेह मे ॥ ४॥ ५०० ॥ अणुपुव्वेण महाघोरं कासवेण पवेइयं । जमायाय इओ पुव्वं समुद्दे ववहारिणो ॥ ५ ॥ ५०१ ॥ अतरिसु तरन्तेगे तरिस्सन्ति अणागया । तं सोचा पडिवक्खामि जन्तवो तं सुणेह मे ॥ ६ ॥ ५०२ ॥ पुढवीजीवा पुढो सत्ता आउजीवा तहागणी। वाउजीवा पुढो सत्ता तणरुक्खा सबीयगा।॥ ७ ॥ ५०३ ॥ अहावरा तसा पाणा एवं छकाय आहिया। एयावए जीवकाए नावरे कोइ विजई ॥ ८ ॥ ५०४ ॥ सव्वाहिँ अणुजुत्तीहिँ मइमं पडिलेहिया। सव्वे अकन्तदुक्खा य अओ सव्वे न हिंसया ॥ ९॥५०५ ॥ एयं खु नाणियो सारं जं न हिंसइ कंचण। अहिंसा समयं चेव एयावन्तं वियाणिया ॥ १० ॥ ५०६ ॥ उद्धं अहे य तिरियं जे केइ तसथावरा। सव्वत्थ विरई विजा सन्ति निव्वाणमाहियं ॥ ११ ॥ ५०७ ॥ पभू दोसे निराकिच्चा न विरुज्झेज केण वि। सणसा वयसा चेव कायसा चेव अन्तसो ॥ १२ ॥ ५०८ ॥ संबुडे से महापन्ने धीरे दत्तेसणं चरे। एसणासमिए निच्चं वजयन्ते अणेसणं ॥ १३ ॥ ५०९ ॥ भूयाइं च समारम्भ तमुद्दिस्सा य जं कडं। तारिसं तु न गिण्हेजा अन्नपाणं सुसंजए ॥ १४ ॥ ५१० ॥ पूईकम्मं न सेवेजा एस धम्मे वुसीमओ। जं किंचि अभिकंखेजा सव्वसो तं न कप्पए ॥१५॥. ॥ ५११ ॥ हणन्तं नाणुजाणेज्जा आयगुत्ते जिइन्दिए । ठाणाइँ सन्ति सङ्घीणं गामेसु नगरेसु वा ॥ १६ ॥ ५१२ ॥ तहा गिरं समारब्स अत्थि पुण्णं ति नो वए । अहवा नत्थि पुण्णं ति एवमेयं महब्भयं ॥ १७ ॥ ५१३ ॥ दाणठ्ठया य जे पाणा हम्मन्ति तसथावरा। तेसि सारक्खणवाए तम्हा अत्थि त्ति नो वए ॥ १८॥५१४॥ जेसिं तं उवक्रप्पन्ति अन्नपाणं तहाविहं । तेसिं लाभन्तरायं ति तम्हा नत्थि त्ति नो वए ॥ १९ ॥ ५१५ ॥ जे य दाणं पसंसन्ति वहमिच्छन्ति पाणिणं । जे य णं पडिसेहन्ति वित्तिच्छेयं करन्ति ते ॥ २० ॥ ५१६ ॥ दुहओ वि ते न भासन्ति अत्यि वा नत्यि वा पुणो। आयं रयस्स हेच्चा णं निव्वाणं पाउणन्ति ते ॥ २१ ॥ ॥ ५१७ ॥ निव्वाणं परमं बुद्धा नक्खत्ताण व चन्दिमा । तम्हा सया जए दन्ते निव्वाणं सधए मुणी ॥ २२ ॥ ५१८ ॥ वुज्झमाणाण पाणागं किच्चन्ताण सकम्मुणा।
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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