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________________ १२५ १ सु० १० १० ] सुत्तागमे सव्वं जगं तू समयाणुपेही पियमप्पियं करस वि नो करेजा । उट्ठाय दीणो य पुणो विसण्णो संपूयणं चेव सिलोयकामी ॥ ७ ॥ ४७९ ॥ आहाकडं चेव निकाममीणे नियामचारी य विसण्णमेसी। इत्थीसु सत्ते य पुढो य वाले परिग्गरं चेव पकुव्वमाणे ॥ ८ ॥ ४८० ॥ वेराणुगिद्धे निचयं करेइ इओ चुए से इहमठ्ठदुग्गं । तम्हा उ मेहावि समिक्ख धम्म चरे मुणि सव्वउ विप्पमुक्के ॥ ९॥ ४८१ ॥ आयं न कुज्जा इह जीवियही असज्जमागो य परिव्वएजा। निसम्मभासी य विणीय गिद्धिं हिंसन्नियं वा न कह करेजा ॥१०॥ ४८२॥ आहाकडं वा न निकामएज्जा निकामयन्ते य न संथवेजा। धुणे उरालं अणुवेहमाणे चिच्चा न सोयं अणवेक्खमागो ॥ ११॥ ४८३ ॥ एगत्तमेयं अभिपत्यएज्जा एवं पमोक्खो न मुसं ति पास। एसप्पमोक्खो अमुसे वरे वि अकोहणे सच्चरए तवस्सी ॥ १२ ॥ ४८४ ॥ इत्थीसु या आरय मेहुणाओ परिग्गहं चेव अकुव्वमाणे । उच्चावएसुं विसएसु ताई निस्संसयं भिक्खु समाहिपत्ते ॥ १३ ॥ ४८५ ॥ अरइं रइं च अभिभूय भिक्खू तणाइफासं तह सीयफासं । उहं च दंसं चऽहियासएज्जा सुभि व दुभि व तितिक्खएज्जा ॥ १४ ॥ ४८६ ॥ गुत्तो वईए य समाहिपत्तो लेसं समाहट्ठ परिव्वएज्जा । गिहं न छाए न वि छायएज्जा संमिस्सभावं पयहे पयासु ॥ १५ ॥ ४८७ ॥ जे केइ लोगम्मि उ अकिरियआया अन्नेण पुट्ठा धुयमादिसन्ति । आरम्भसत्ता गढिया य लोए धम्म न जाणन्ति विमोक्खहेउं ॥ १६॥ ४८८ ॥ पुढो य छन्दा इह माणवा उ किरियाकिरीयं च पुढो य वायं । जायस्स वालस्स पकुव्व देहं पवट्ठई वेरमसंजयस्स ॥ १७ ॥ ४८९ ॥ आउक्खयं चेव अबुज्झमाणे ममाइ से साहसकारि मन्दे । अहो य राओ परितप्पमाणे अढेसु मूढे अजरामरे व्व ॥ १८ ॥ ४९० ॥ जहाहि वित्तं पसवो य सव्वं जे वन्धवा जे य पिया य मित्ता । लालप्पई से वि य एइ मोहं अन्ने जणा तंसि हरन्ति वित्तं ॥ १९ ॥ ४९१ ॥ सीहं जहा खुड्डमिगा चरन्ता दूरे चरन्ति परिसंकमाणा। एवं तु मेहावि समिक्ख धम्मं दूरेण पावं परिवज्जएज्जा ॥ २० ॥ ४९२ ॥ संवुज्झमाणे उ नरे' मईमं पावाउ अप्पाण निवट्टएज्जा । हिंसप्पसूयाइँ दुहाइँ मत्ता वेराणुवन्धीणि महब्भयाणि ॥ २१ ॥ ४९३ ॥ मुसं न वूया मुणि अत्तगामी निव्वाणमेयं कसिणं समाहिं । सयं न कुज्जा न य कारवेज्जा करन्तमन्नं पि य नाणुजाणे ॥ २२ ॥ ४९४ ॥ सुद्धे सिया जाएँ न दूसएजा अमुच्छिए न य अज्झोववन्ने । धिइमं विमुक्के न य पूयणट्ठी न सिलोयगामी य परिव्वएजा ॥ २३ ॥ ४९५ ॥ निक्खम्म गेहाउ निरावकंखी कायं विउस्सेज्ज नियाणछिन्ने । नो जीवियं नो मरणाभिकंखी चरेज भिक्खू वलया विमुक्के ॥ २४ ॥ ॥ ४९६ ॥ त्ति बेमि ॥ समाहियज्झयणं दसमं ॥
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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