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________________ सुत्तागमे [सूयगडं कुसीलपरिभासियज्झयणे सत्तमे पुढवी य आऊ अगणी य वाऊ तण रुक्ख बीया य तसा य पाणा । जे अण्डया जे य जराउ पाणा संसेयया जे रसयाभिहाणा ॥ १ ॥ ३८१ ॥ एयाइँ काया पवेइयाइं एएसु जाणे पडिलेह सायं । एएण काएण य आयदण्डे एएसु या विप्परियासुवेन्ति ॥ २ ॥ ३८२ ॥ जाईपहं अणुपरिवट्टमाणे तसथावरेहिं विणिघायमेइ । से जाइ जाइं बहुकूरकम्मे जं कुव्वई मिजइ तेण बाले ॥ ३ ॥ ३८३ ॥ अस्सि च लोए अदु वा परत्था सयग्गसो वा तह अन्नहा वा । संसारमावन्न परं परं ते बन्धन्ति वेयन्ति य दुन्नियाणि ॥ ४ ॥ ३८४ ॥ जे मायरं वा पियरं च हिच्चा समणव्वए अगणि समारभिजा । अहाहु से लोऍ कुसीलधम्मे भूयाइँ जे हिंसइ आयसाए ॥५॥ ॥ ३८५ ॥ उजालओ पाण निवायएज्जा निव्वावओ अगणि निवायवेजा। तम्हा उ मेहावि समिक्ख धम्म न पण्डिए अगणि समारभिजा ॥ ६ ॥ ३८६ ॥ पुढवी वि जीवा आऊ वि जीवा पाणा य संपाइम संपयन्ति । संसेयया कट्ठसमस्सिया य एए दहे अगगिं समारभन्ते ॥ ७ ॥ ३८७ ॥ हरियाणि भूयाणि विलम्बगाणि आहार देहा य पुढो सियाइ । जे छिन्दई आयसुहं पडुच पागन्भि पाणे बहुणं तिवाई ॥ ८ ॥ ३८८ ॥ जाइं च बुद्धिं च विणासयन्ते बीयाइ अस्संजय आयदण्डे । अहाहु से लोऍ अणजधम्मे बीयाइ से हिंसइ आयसाए ॥ ९ ॥ ३८९ ॥ गन्भाइ मिजन्ति वुयावुयाणा नरा परे पञ्चसिहा कुमारा। जुवाणगा मज्झिम थेरगा य चयन्ति ते आउखए पलीणा ॥ १० ॥ ३९० ॥ संबुज्झहा जन्तवो माणुसत्तं दर्रा भयं वालिसेणं अलम्भो। एगन्तदुक्खे जरिए व लोए सकम्मुणा विप्परियासुवेइ ॥ ११ ॥ ३९१ ॥ इहेग मूढा पवयन्ति मोक्खं आहारसंपजणवजणेणं । एगे य सीओदगसेवणेणं हुएण एगे पवयन्ति मोक्खं ॥ १२॥ ३९२ ॥ पाओसिणाणाइसु नत्थि मोक्खो खारस्स लोणस्स अणासणेणं । ते मजमंसं लसुणं च भोच्चा अन्नत्थ वासं परिकप्पयन्ति ॥ १३ ॥ ३९३ ॥ उदगेण जे सिद्धिमुदाहरन्ति सायं च पायं उदगं फुसन्ता। उदगस्स फासेण सिया य सिद्धी सिज्झिसु पाणा बहवे दगंसि ॥ १४ ॥ ३९४ ॥ मच्छा य कुम्मा य सिरीसिवा य मग्गू य उट्टा दगरक्खसा य। अढाणमेयं कुसला वयन्ति उदगेण जे सिद्धिमुदाहरन्ति ॥ १५ ॥ ३९५ ॥ उदगं जई कम्ममलं हरेजा एवं सुहं इच्छामित्तमेव । अन्धं व नेयारमणुस्सरित्ता पाणाणि चेवं विणिहन्ति मन्दा ॥ १६ ॥ ३९६ ॥ पावाइँ कम्मा पकुव्वओ हि सिओदगं ऊ जइ तं हरेजा । सिन्झिसु एगे दगसत्तघाई मुसं वथन्ते जलसिद्धिमाहु ॥१७॥ ॥ ३९७ ॥ हुएण जे सिद्धिमुदाहरन्ति सायं च पायं अगणि फुसन्ता । एवं सिया
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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