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________________ १ सु० अ० ५ उ०२] सुत्तागमे हन्ति । रहंसि जुत्तं सरयन्ति बालं आरुस्स विज्झन्ति तुदेण पिढे ॥ ३ ॥ ३२९ ॥ अयं व तत्तं जलियं सजोइ तऊवमं भूमिमणुक्कमन्ता । ते डज्झमाणा कलुणं थणन्ति उसुचोइया तत्तजुगेसु जुत्ता ॥ ४ ॥ ३३० ॥ बाला वला भूमिमणुक्कमन्ता पविजलं लोहपहं च तत्तं । जंसी भिदुग्गसि पवजमाणा पेसे व दण्डेहि पुरा करेन्ति ॥ ५॥ ॥ ३३१ ॥ ते संपगाढंसि पवजमाणा सिलाहि हम्मन्ति निपातिणीहिं । संतावणी नाम चिरढ़िईया संतप्पई जत्थ असाहुकम्मा ॥ ६ ॥ ३३२ ॥ कन्दूसु पक्खिप्प पयन्ति वालं तओ वि दड्डा पुण उप्पयन्ति । ते उद्दकाएहि पखज्जमाणा अवरेहि खजन्ति सणप्फएहि ॥ ७ ॥ ३३३ ॥ समूसियं नाम विधूमठाणं जं सोयतत्ता कलुणं थणन्ति । अहोसिरं कट्ठ विगत्तिऊणं अयं व सत्थेहि समोसवेन्ति ॥ ८॥ ॥ ३३४ ॥ समूसिया तत्थ विसूणियंगा पक्खीहिं खजन्ति अयोमुहेहिं । संजीवणी नाम चिरहिईया जंसी पया हम्मइ पावचेया ॥ ९ ॥ ३३५ ॥ तिक्खाहि सूलाहि निवाययन्ति वसोगयं सावययं व लद्धं । ते सूलविद्धा कलुणं थणन्ति एगन्तदुक्खं दुहओ गिलाणा ॥ १० ॥ ३३६ ॥ सया जलं नाम निहं महन्तं जंसी जलन्तो अगणी अकट्ठो। चिट्ठन्ति बद्धा बहुकूरकम्मा अरहस्सरा केइ चिरहिईया ॥ ११ ॥ ॥ ३३७ ॥ चिया महन्तीउ समारभित्ता छुन्भन्ति ते तं कलुणं रसन्ति । आवट्टई तत्थ असाहुकम्मा सप्पी जहा पडियं जोइमज्झे ॥ १२ ॥ ३३८ । सया कसिणं पुण धम्मठाणं गाढोवणीयं अइदुक्खधम्मं । हत्थेहि पाएहि य बन्धिऊणं सत्तुव्वदण्डेहि समारभन्ति ॥ १३ ॥ ३३९ ॥ भजन्ति बालस्स वहेण पुट्ठी सीसं पि भिन्दन्ति अयोधणेहिं । ते भिन्नदेहा फलगं व तच्छा तत्ताहि आराहि नियोजयन्ति ॥ १४ ॥ ३४०॥ अभिमुंजिया रुद्द असाहुकम्मा उसुचोइया हत्यिवहं वहन्ति । एग दुरूहित्तु दुवे तओ वा आरुस्स विज्झन्ति ककाणओ से ॥ १५॥ ३४१॥ चाला वला भूमिमणुकमन्ता पविजलं कण्टइलं महन्तं । विवद्धतप्पेहि विवण्णचित्ते समीरिया कोट्टवलिं करेन्ति ॥ १६ ॥ ३४२ ॥ वेयालिए नाम महाभितावे एगायए पव्वयमन्तलिक्खे । हम्मन्ति तत्था बहुकूरकम्मा परं सहस्साण मुहत्तगाणं ॥ १७ ॥ ॥३४३ ॥ संवाहिया दुक्कडिणो थणन्ति अहो य राओ परितप्पमाणा । एगन्तकूडे नरगे महन्ते कूडेण तत्था विसमे हया उ॥ १८ ॥ ३४४ ॥ भजन्ति णं पुन्वमरी सरोसं समुग्गरे ते मुसले गहेडं । ते भिन्नदेहा रहिरं वमन्ता ओमुद्धगा धरणितले पडन्ति ॥ १९ ॥ ३४५ ॥ अणासिया नाम महासियाला पागब्मिणो तत्य सयावकोवा । खजन्ति तत्था बहुकूरकम्मा अदूरगा संखलियाहि बद्धा ॥२०॥ ॥ ३४६ ॥ सयाजला नाम नई भिदुग्गा पविज्जलं लोहविलीणतत्ता । जंसी भिद
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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