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________________ f १ सु० अ० ४- उ० ] सुत्तागमे ११३ सीहं जहा व कुणिमेगं निब्भयमेगचरं ति पासेगं । एवित्थियाउ वन्धन्ति संवुड एगइयमणगारं ॥ ८ ॥ २५४ ॥ अह तत्थ पुणो नमयन्ती रहकारो व नेमि आणुपुव्वीए । बद्धो मिए व पासेणं फन्दन्ते वि न मुच्चए ताहे ॥ ९ ॥ २५५ ॥ अह सेऽणुतप्पई पच्छा भोचा पायसं व विसमिस्सं । एवं विवेगमायाय संवासो न वि कप्पए दविए ॥ १० ॥ २५६ ॥ तम्हा उ वज्जए इत्थी विसलित्तं व कण्टगं नच्चा । ओए कुलाणि वसवत्ती आघाए न से वि निग्गन्थे ॥ ११ ॥ २५७ ॥ जे एयं उञ्छं अद्धा अन्नरा होन्ति कुसीलागं । सुतवस्सिए वि से भिक्खू नो विहरे सह णमित्थीसु ॥ १२॥ २५८ ॥ अवि धूयराहि मुण्हाहिं धाईहिं अदुव दासीहिं । महईहि वा कुमारीहिं संथवं से न कुज्जा अणगारे ॥ १३ ॥ २५९ ॥ अदु नाइणं च सुहीणं वा अणियं दट्टु एगया होइ । गिद्धा सत्ता कामेहिं रक्खणपोसणे मणुस्सोऽसि ॥ १४॥ ॥ २६० ॥ समणं पि दह्रुदासीगं तत्थ वि ताव एगे कुप्पन्ति । अदुवा भोयणेहि नत्थेहिं इत्थदोसं संकिणो होन्ति ॥ १५ ॥ २६१ ॥ कुव्वन्ति संथवं ताहिं पन्भट्ठा समाहिजोगेहिं । तम्हा समणा न समेन्ति आयहियाए संनिसेज्जाओ ॥ १६ ॥ २६२॥ बहवे गिहाई अवहट्टु मिस्सीभावं पत्थुया य एगे । धुवमग्गमेव पवयन्ति वायावीरियं कुसीलाणं ॥ १७ ॥ २६३ ॥ सुद्धं रवइ परिसाए अह रहस्सम्मि दुकडे करेति । जागन्ति य णं तहाविऊ माइले महासढेऽयं ति ॥ १८ ॥ २६४ ॥ सयं दुक्कडं च न वयइ आइट्ठो विपकत्थइ वाले । वेयाणुवीर मा कासी चोइजन्तो गिलाइ से भुजो ॥ १९ ॥ २६५ ॥ ओसिया वि इत्थिपोसेस पुरिसा इत्थिवेयखेयन्ना । पन्नासमन्निया वेगे नारीणं वसं उवकसन्ति ॥ २० ॥ २६६ ॥ अवि हत्यपायछेयाए अदुवा चद्धमंसउक्कन्ते । अवि तेयसाभितावणाणि तच्छिय खारसिंचणाइँ य ॥२१॥२६७॥ अदु कण्णनासछेयं कण्ठच्छेयणं तिझ्क्खन्ती । इइ एत्थ पावसंतत्ता न वेन्ति पुणो न काहिन्ति ॥ २२ ॥ २६८ ॥ सुयमेयमेवमेगेसिं इत्थीवेय त्ति हु सुयक्खायं । एयं पिता वत्ताणं अदुवा कम्मुणा अवकरेन्ति ॥ २३ ॥ २६९ ॥ अन्नं मणेण चिन्तेन्ति वाया अन्नं च कम्मुणा अन्नं । तम्हा न सद्दहे भिक्खू बहुमायाओ इथिओ नच्चा ॥ २४ ॥ २७० ॥ जुवई समणं वूया विचित्तलंकारवत्थगाणि परिहित्ता । विरया चरिस्सहं स्क्खं धम्ममाइक्ख णे भयन्तारो ॥ २५ ॥ २७१ ॥ अदु सावियापवाणं अहमंसि साहम्मिणी य समणाणं । जउकुम्भे जहा उवज्जोई संवासे विऊ विसीएजा ॥ २६ ॥ २७२ ॥ जउकुम्भे जोइउवगूढे आसुभितत्ते नासमुवयाइ । एवित्थियाहि अणगारा संवासेण नासमुवयन्ति ॥ २७ ॥ २७३ ॥ कुव्वन्ति पावगं कम्मं पुट्ठा वेगेवमाहिंसु । नो हं करेमि पावं ति अंकेसाइणी ममेस त्ति ॥ २८॥२७४॥ 4 सत्ता
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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