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________________ . सु० अ० ३-उ० ४] सुत्तागमे संबद्धसमकप्पा उ अन्नमन्नेसु मुच्छिया । पिण्डवायं गिलाणस्स जं सारेह दलाह य ॥९॥ २१२ ॥ एवं तुन्भे सरागत्या अन्नमन्नमणुव्वसा । नट्ठसप्पहसब्भावा संसारस्स अपारगा ॥ १० ॥ २१३ ॥ अह ते परिभासेजा भिक्खु मोक्खविसारए । एवं तुन्भे पभासन्ता दुपक्खं चेव सेवह ॥ ११ ॥ २१४ ॥ तुम्भे भुजह पाएसु गिलागो अभिहडम्मि य । तं च बीओदगं भोच्चा तमुहिस्सादि जं कई ॥ १२॥ २१५॥ लित्ता तिव्चाभितावेणं उज्झिया असमाहिया । नाइकण्डूइयं सेयं अरुयस्सावरज्ञई ॥ १३ ॥ २१६॥ तत्तेण अणुसिहा ते अपडिन्नेण जाणया। न एस नियए मग्गे असमिक्खा वई किई ॥ १४ ॥ २१७ ॥ एरिसा जा वई एसा अग्गवेणु व्व करिसिया। गिहिणो अभिहडं सेयं भुजिउं न उ भिक्खुणं ॥ १५ ॥ २१८ ॥ धम्मपन्नवणा जा सा सारम्भा न विसोहिया । न उ एयाहि दिट्ठीहिं पुन्वमासिं पगप्पियं ॥ १६ ॥ २१९ ॥ सव्वाहि अणुजुत्तीहिं अचयन्ता जवितए । तओ वायं निराकिच्चा ते भुजो वि पगन्भिया ॥ १७ ॥ २२० ॥ रागदोसाभिभूयप्पा मिच्छत्तेण अभिडुया । आउस्से सरणं जन्ति टंकणा इव पव्वयं ॥ १८ ॥ २२१ ॥ बहुगुणप्पगप्पाई कुजा अत्तसमाहिए । जेणन्ने न विरुज्झेजा तेण तं तं समायरे ॥ १९ ॥ २२२ ॥ इमं च धम्ममायाय कासवेण पवेइयं । कुज्जा भिक्खू गिलाणस्स अगिलाए समाहिए ॥ २० ॥ २२३ ॥ संखाय-पेसलं धर्म दिद्विमं परिनिव्वुडे । उवसग्गे नियामित्ता आमोक्खाए परिव्वएजासि ॥२१॥२२४॥ त्ति बेमि ॥ उवसग्गज्झयणे तइयुद्देसे ।। आहंसु महापुरिसा पुट्विं तत्ततवोधणा। उदएण सिद्धिमावन्ना तत्थ मन्दो विसीयइ ॥ १ ॥ २२५ ।। अभुजिया नमी विदेही रामगुत्ते य भुञ्जिया । बाहुए उदगं भोच्चा तहा नारायणे रिसी ॥२॥ २२६ ॥ आसिले देविले चेव दीवायण महारिसी । पारासरे दग भोचा बीयाणि हरियाणि य ॥ ३ ॥ २२७ ॥ एए पुन्वं महापुरिसा आहिया इह संमया । भोच्चा बीयोदगं सिद्धा इइ मेयमणुस्सुयं ॥ ४ ॥ २२८ ॥ तत्थ मन्दा विसीयन्ति वाहच्छिंन्ना व गद्दभा। पिट्ठओ परिसप्पन्ति पिट्ठसप्पी य संभमे ॥५॥ २२९ ॥ इहमेगे उ भासन्ति सायं साएंण विजई । जे तत्थ आरियं मग्गं परमं च समाहिये ॥ ६॥ २३० ॥ मा एयं अवमन्नन्ता अप्पेणं लुम्पहा बहुं । एयस्स उ अमोक्खाएं अयोहारि व्व जूरह ॥ ७ ॥ २३१ ॥ पाणाइवाए वहन्ता मुसावाए असंजया । अदिन्नादाणे वट्टन्ता मेहणे य परिग्गहे ॥ ८ ॥ २३२ ।। एवमेगे उ पासत्या पन्नवन्ति अणारिया। इत्थीवसं गया बाला जिणसासणपरंमुहा ॥९॥ २३३ ॥ जहा गण्डं पिलागं वा परिपीलेज मुहुत्तगं । एवं विन्नवणिस्थीसु
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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