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________________ ११० सुत्तागमे [सूयगडंजं किंचि अणगें ताय तं पि सव्वं समीकयं । हिरणं ववहाराइ तं पि दाहामु ते वयं ॥८॥१८९॥ इच्छेव णं सुसेहन्ति कालुणीयसमुट्ठिया । विवद्धो नाइसंगेहिं तओऽगारं पहावइ ॥ ९ ॥ १९० ॥ जहा रुक्खं वणे जायं मालुया पडिचन्धइ । एवं णं पडिवन्धन्ति नाइओ असमाहिणा ॥ १० ॥ १९१ ॥ विवद्धो नाइसंगेहि हत्थी वा वि नवग्गहे। पिट्ठओ परिसप्पन्ति सुय गो व्व अदूरए ॥ ११ ॥ १९२ ॥ एए संगा मणूसाणं पायाला व अतारिमा । कीवा जत्थ य किस्सन्ति नाइसंगेहि मुच्छिया ॥ १२ ॥ १९३ ॥ तं च भिक्खू परिन्नाय सव्वे संगा महासवा । जीवियं नावकं. खिजा सोचा धम्ममणुत्तरं ॥ १३ ॥ १९४ ॥ अहिमे सन्ति आवद्या कासवेणं पवेइया । बुद्धा जत्थावसप्पन्ति सीयन्ति अबुहा जहिं ॥ १४ ॥ १९५ ॥ रायाणो रायऽमच्चा य माहणा अदु व खत्तिया । निमन्तयन्ति भोगेहि भिक्खुयं साहुजीविणं ॥ १५ ॥ १९६ ॥ हत्यस्सरहजाणेहिं विहारगमणेहि य। भुज भोगे इमे सग्धे महरिसी पूजयामु तं ॥ १६ ॥ १९७ ॥ वत्थगन्धमलंकारं इत्थीओ सयणाणि य । भुजाहिमाइँ भोगाइं आउसो पूजयामु तं ॥ १७ ॥ १९८ ॥ जो तुमे नियमो चिण्णो भिक्खु भावम्मि सुन्वया। अगारमावसन्तस्स सव्वो संविजए तहा ॥ १८॥१९९॥ चिरं दूइज्जमाणस्स दोसो दाणि कुओ तव । इच्चेव णं निमन्तेन्ति नीवारेण व सूयरं ॥ १९ ॥ २०० ॥ चोइया भिक्खचरियाए अचयन्ता जवित्तए। तत्य मन्दा विसीयन्ति उज्जाणंसि च दुब्बला ॥ २० ॥ २०१॥ अचयन्ता व लूहेगं उवहाणेण तजिया । तत्थ मन्दा विसीयन्ति उज्जाणंसि जरग्गवा ॥ २१ ॥ २०२ ॥ एव निमन्तणं लटुं मुच्छिया गिद्ध इत्थिसु । अज्झोववन्ना कामेहिं चोइजन्ता गया गिह ॥ २२ ॥ २०३ ॥ ति बेमि ॥ उवसग्गज्झयणे बिइयुद्देसे ॥ __ जहा संगामकालम्मि पिट्ठओ भीरु वेहइ । वलयं गहणं नूमं को जाणइ पराजय ॥१॥ २०४ ॥ मुहुत्ताणं मुहुनस्स मुहुत्तो होइ तारिसो । पराजियाऽवसप्पामा इइ भीरू उवेहई ॥ २ ॥ २०५॥ एवं उ समणा एगे अबलं नचाण अप्पगं । अणागयं भयं दिस्स अवकप्पन्तिमं सुयं ॥ ३ ॥ २०६ ॥ को जाणइ विऊवाय इत्थीओ उदगाउ वा । चोइजन्ता पवक्खामो न नो अत्थि पकप्पियं ॥४॥२०७॥ इच्चेव पडिलेहन्ति वलया पडिलेहिणो। वितिगिच्छसमावन्ना पन्थाणं च अकोविया ॥ ५॥ २०८ ॥ जे उ संगामकालम्मि नाया ,सूरपुरंगमा । नो ते पिट्ठमुवेहिन्ति किं परं मरणं सिया ॥ ६ ॥ २०९ ॥ एवं समुट्ठिए भिक्खू वोसिजा-गारबन्धणे । आरम्भ तिरियं कट्टु अत्तत्ताए परिव्वए ॥ ७ ॥ २१०॥ तमेगे परिभासन्ति भिक्खुयं साहुजीविणं । जे एवं परिभासन्ति अन्तए ते समाहिए ॥ ८ ॥ २११ ।।
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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