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________________ सु० अ० २-उ० ३] सुत्तागमे १०७ असमाही उ तहागयस्स वि ॥ १८ ॥ १२८ ॥ अहिगरणकडस्स भिक्खुणो वयमाणस्स पसज्झ दारुणं । अढे परिहायई बहू अहिगरणं न करेज पण्डिए ॥ १९ ॥ १२९ ॥ सीओदग पडि दुगुछिणो अपडिन्नस्स लवावसप्पिणो । सामाइयमाहु तस्स जं जो गिहिमत्तेऽसणं न भुलई ॥ २० ॥ १३० ॥ न य संखयमाहु जीवियं तह वि य बालजणो पगभई । वाले पावेहि मिज्जई इइ संखाय मुणी न मज्जई ॥ २१ ॥ १३१॥ छंदेण पले इमा पया बहुमाया मोहेण पावुडा। वियडेण पलेन्ति माहणे सीउण्हं वयसा हियासए ॥ २२ ॥ १३२ ॥ कुजए अपराजिए जहा अक्खेहि कुसलेहिं दीवयं । कडमेव गहाय नो कलिं नो तीयं नो चेव दावरं ॥ २३ ॥ १३३ ॥ एवं लोगम्मि ताइणा वुइए जे धम्मे अणुत्तरे । तं गिण्ह हियं ति उत्तमं कडमिव सेसऽवहाय पण्डिए ॥ २४ ॥ १३४ ॥ उत्तर मणुयाण आहिया गामधम्म इइ मे अणुस्सुयं । जसी विरया समुट्ठिया कासवस्स अणुधम्मचारिणो ॥ २५ ॥ १३५ ॥ जे एय चरन्ति आहियं नाएणं महया महेसिणा । ते उट्ठिय ते समुट्ठिया अन्नोन्नं सारेन्ति धम्मओ ॥ २६ ॥ १३६ ॥ मा पेह पुरा पणामए अभिकंखे उवहिं धुणित्तए । जे दूमण तेहि नो नया ते जाणन्ति समाहिमाहियं ॥ २७ ॥ १३७ ॥ नो काहिएँ होज संजए पासणिए न य संपसारए । नच्चा धम्म अणुत्तरं कयकिरिए न यावि मामए ॥ २८ ॥ १३८ ॥ छन्नं च पसंस नो करे न य उक्कोस पगास माहणे । तेसिं सुविवेगमाहिए पणया जेहि सुजोसियं धुयं ॥२९॥ ॥ १३९ ॥ अनिहे सहिए सुसंवुडे धम्मट्ठी उवहाणवीरिए। विहरेज समाहिइंदिए अत्तहियं खु दुहेण लब्भइ ॥ ३० ॥ १४० ॥ न हि नूण पुरा अणुस्सुयं अदु वा तं तह नो समुट्ठियं । मुणिणा सामाइ आहियं नाएणं जगसव्वदसिणा ॥३१॥१४१॥ एवं मत्ता महन्तरं धम्ममिणं सहिया वहू जणा । गुरुगो छंदाणुवत्तगा विरया तिण्ण महोघमाहियं ॥३२॥१४२॥ ति बेमि ॥ वेयालियज्झयणम्मि बिइयुद्देसो॥ संवुडकम्मस्स भिक्खुणो जं दुक्खं पुढं अवोहिंए । तं संजमओऽवचिजई मरणं हेच्च वयन्ति पण्डिया ॥१॥१४३॥ जे विन्नवणाहिजोसिया संतिण्णेहि समं वियाहिया। तम्हा उ8 ति पासहा अदक्खु कामा रोगवं ॥ २॥ १४४ ॥ अग्गं वणिएहि आहियं धारेन्ती राइणिया इहं । एवं परमा महन्वया अक्खाया उ सराइभोयणा ॥ ३ ॥ १४५ ॥ जे इह सायाणुगा नरा अज्झोववन्ना कामेहिं मुच्छिया । किवणेण समं पगन्भिया न वि जाणन्ति समाहिमाहियं ॥ ४ ॥ १४६ ॥ वाहेण जहा व विच्छए अबले होइ गवं पचोइए । से अन्तसो अप्पथामए नाइवहे अवले विसीयइ ॥ ५॥ १४७ ॥ एवं कामेसणं विऊ अज्ज सुए पयहेज संथवं । कामी कामे न
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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