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________________ सुत्तागमे [सूयगडं पावेहि पुणो पगमिया ॥ २० ॥ १०८ ॥ तम्हा दवि इक्ख पण्डिए पावाओ विरएऽभिनिव्वुडे । पणए वीरं महाविहिं सिद्धिपहं नेयाउयं धुवं ॥ २१ ॥ १०९ ॥ वेयालियमग्गमागओ मणवयसा काएण निव्वुडो । चिच्चा वित्तं च नायओ आरम्भ च सुसंवुडं चरे ॥ २२ ॥ ११० ॥ त्ति बेमि वेयालियज्झयणे पढमुद्देसो ॥ तयसं व जहाइ से रयं इइ संखाय मुणी न मज्जई। गोयन्नतरेण माहणे अहसेयकरी अन्नेसि इंखिणी ॥ १ ॥ १११ ॥ जो परिभवई परं जणं संसारे परिवत्तई महं । अदु इंखिणिया उ पाविया इइ संखाय मुणी न मजई ॥२॥११२॥ जे यावि अणायगे सिया जे वि य पेसगपेसगे सिया। जे मोणपर्य उवट्ठिए नो लज्जे समयं सया चरे ॥ ३ ॥ ११३ ॥ सम अन्नयरम्मि संजमे संसुद्धे समणे परिव्वए। जे आवकहा समाहिए दविए कालमकासि पण्डिए ॥ ४ ॥ ११४ ॥ दूरं अणुपस्सिया मुणी तीयं धम्ममणागयं तहा। पुढे फरसेहि माहणे अवि हण्णू समयम्मि रीयइ ॥ ५॥ ११५ ॥ पन्नसमत्ते सया जए समताधम्ममुदाहरे मुणी। सुहुमे उ सया अलूसए नो कुज्झे नो माणि माहणे ॥ ६ ॥ ११६ ॥ बहुजणनमणम्मि संवुडो सव्वटेहि नरे अणिस्सिए। हरए व सया अणाविले धम्मं पादुरकासि कासवं ॥ ७ ॥ ११७ ॥ बहवे पाणा पुढो सिया पत्तेयं समयं समीहिया । जे मोणपयं उपट्ठिए विरइं तत्थ अकासि पण्डिए ॥ ८ ॥ ११८ ॥ धम्मस्स य पारगे मुणी आरम्भस्स य अन्तए ठिए। सोयन्ति य णं ममाइणो नो लब्भन्ति नियं परिंग्गरं ॥ ९ ॥ ११९ ॥ इहलोगदुहावहं विऊ परलोगे य दुहं दुहावहं । विद्धसणधम्ममेव तं इइ विजं को गारमावसे ॥ १० ॥ १२० ॥ महयं पलिगोव जाणिया जॉ वि य वंदणपूयणा इहं। सुहमे सल्ले दुरुद्धरे विउमंता पयहिज संथवं ॥ ११ ॥ १२१॥ एगे चर ठाणमासणे सयणे एग समाहिए सिया। भिक्खू उवहाणवीरिए वइगुत्ते अज्झत्तसंवुडो ॥ १२ ॥ १२२ ॥ नो पीहे न यावपंगुणे दारं सुन्नघरस्स संजए । पुढे न उदाहरे वयं न समुच्छे नो संथरे तणं ॥ १३॥ १२३॥ जत्थत्थमिए अणाउले समविसमाइं मुणी हियासए । चरगा अदु वा वि भेरवा अदु वा तत्थ सरीसिवा सिया ॥ १४ ॥ १२४-॥ तिरिया मणुया य दिव्वगा उवसग्गा तिविहा हियासिया। लोमादीयं न हारिसे सुन्नागारगओ महामुणी ॥ १५॥१२५॥ नो अभिकंखेज जीवियं नो वि य पूयणपत्थए सिया । अब्भत्थमुवेन्ति भेरवा सुन्नागारगयस्स भिक्खुणो ॥ १६ ॥ १२६ ॥ उवणीयतरस्स ताइणो भयमाणस्स विविकमासगं । सामाइयमाहु तस्स जं जो अप्पाण भए न दसए ॥ १७॥१२७ ॥ उसिणोदगतत्तभोइणो धम्मठियस्स मुणिस्स हीमतो। संसग्गे असाहु राइहि
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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