SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुत्तागसे [ सूयगड कामए लद्धे वा वि अलद्ध कण्हुई ॥ ६ ॥ १४८ ॥ मा पच्छ असाहुया भवे अचेही अणुसास अप्पगं । अहियं च असाहु सोयई से थणई परिदेवई बहुं ॥ ७ ॥ १४९ ॥ इह जीवियमेव पासहा तरुणे वा ससयस्स तुट्टई । इत्तरवासे य वुज्झह गिद्ध नरा कामेसु मुच्छिया ॥ ८ ॥ १५० ॥ जे इह आरम्भनिस्सिया आयदण्ड एगन्तलुसगा । गन्ता ते पावलोगयं चिररायं आसुरियं दिसं ॥ ९ ॥ १५१ ॥ न य संखयमाहु जीवियं तह वि य बालजणो पगभई ॥ पचुप्पन्नेण कारियं को दट्टु परलोगमागए ॥ १० ॥ १५२ ॥ अदक्खुव दक्खुवाहियं तं सद्दहसु अदक्खुदंसणा । हंदि हु सुनिरुद्धदंसणे मोहणिएण कडेण कम्मुणा ॥ ११ ॥ १५३ ॥ दुक्खी मोहे पुणो पुणो निव्विन्देज सिलोगपूयणं । एवं सहिए हिपासए आयतुलं पाणेहि संजए ॥१२॥ ॥ १५४ ॥ गारं पिय आवसे नरे अणुपुव्वं पाणेहि संजए । समया सव्वत्थ सुव्वए देवाणं गच्छे सलोगयं ॥ १३ ॥ १५५ ॥ सोचा भगवाणुसासणं सच्चे तत्थ करेज्जुचक्क । सव्वत्थ विणीयमच्छरे उच्छं भिक्खु विसुद्धमाहरे ॥ १४ ॥ १५६ ॥ सव्वं नच्चा अहि धम्मट्ठी उवहाणवीरिए । गुत्ते जुत्ते सया जए आयपरे परमायतट्ठिए ॥ १५॥ १५७ ॥ वित्तं पसवो य नाइओ तं वाले सरणं ति मन्नई । एए मम तेसु वी अहं नो ताणं सरणं न विज्जई ॥ १६ ॥ १५८ ॥ अब्भागमियम्मि वा दुहे अहवा उक्कमिए भवन्तिए । एगस्स गई य आगई विदुमन्ता सरणं न मन्नई ॥ १७ ॥ १५९ ॥ सव्वे सयकम्मकप्पिया अवियत्तेण दुहेण पाणिगो । हिण्डन्ति भयाउला सढा जाइजरामरणेहिऽभिहुया ॥ १८ ॥ १६० ॥ इणमेव खणं वियाणिया नो सुलभं बोहिं च आहियं । एवं सहिए हिपासए आह जिणे इणमेव सेसगा ॥ १९ ॥ १६१ ॥ अभविंसु पुरा वि भिक्खुवो आएसा वि भवन्ति सुव्वया । एयाइँ गुणाई आहु ते कासवस्स अणुधम्मचारिणो ॥ २० ॥ १६२ ॥ तिविहेण वि पाण मा हणे आयहिए अणियाण संबुडे । एवं सिद्धा अणन्तसो संपइ जे य अणाग्र्यावरे ॥ २१ ॥ १६३ ॥ एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी अणुत्तरदंसी अणुत्तरनाणदंसणधरे । अरहा नायपुत्ते भगवं वेसालिए वियाहिए ॥ २२ ॥ १६४ ॥ त्ति बेमि ॥ वेयालियज्झयणं विइयं ॥ १०८ उवसग्गज्झयणे तइए सूरं मन्नइ अप्पाणं जाव जेयं न पस्सई । जुज्झन्तं दढधम्माणं सिसुपालो व महारहं ॥ १ ॥ १६५ ॥ पयाया सूरा रणंसीसे संगामम्मि उवट्ठिए । माया पुत्तं
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy