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________________ १ सु० अ०२-उ०१] १०५ वैयालियज्झयणे विइए संवुज्झह किं न बुज्झह संवोही खलु पेञ्च दुल्लहा । नो हूवणमन्ति राइयो नो सुलभं पुणरावि जीवियं ॥ १ ॥ ८९ ॥ डहरा बुड्ढा य पासह गन्भत्या वि चयन्ति माणवा । सेणे जह वट्टयं हरे एवं आउखयम्मि तुट्टई ॥२॥९०॥ मायाहि पियाहिं लुप्पई नो सुलहा सुगई य पेच्चओ। एयाइ भयाइ पेहिया आरम्भा विरमेज सुव्वए ॥ ३ ॥ ९१ ॥ जमिणं जगई पुढो जगा कम्मेहिं लुप्पन्ति पाणिणो । सयमेव कडेहि गाहई नो तस्स मुच्चेजऽपुठ्ठयं ॥ ४ ॥ ९२॥ देवा गन्धव्वरक्खसा असुरा भूमिचरा सरीसिवा । राया नरसेठिमाहणा ठाणा ते वि चयन्ति दुक्खिया ॥ ५ ॥ ९३ ॥ कामेहि य संथवेहि गिद्धा कम्मसहा कालेण जन्तवो । ताले जह बन्धणञ्चुए एवं आउखयम्मि तुई ॥ ६ ॥ ९४॥ जे यावि वहुस्सुए सिया धम्मिय माहण भिक्खुए सिया। अभिनूमकडेहि मुच्छिए तिव्वं ते कम्मेहि किच्चई ॥ ७ ॥ ९५ ॥ अह पास विवेगमुट्ठिए अवितिण्णे इह भासई धुवं । नाहिसि आरं कओ परं वेहासे कम्मेहि किच्चई ॥ ८॥ ९६ ॥ जइ वि य नगिणे किसे चरे जइ वि य भुञ्जिय मासमन्तसो । जे इह मायाहि मिजई आगन्ता गब्भाय णन्तसो ॥ ९ ॥ ९७ ॥ पुरिसोरम पावकम्मुणा पलियन्तं मणुयाण जीवियं । सन्ना इह काममुच्छिया मोहं जन्ति नरा असंवुडा ॥ १० ॥ ९८ ॥ जययं विहराहि जोगवं अणुपाणा पन्था दुरुत्तरा । अणुसासणमेव पक्कमे वीरेहिं सम्मं पवेइयं ॥ ११ ॥ ९९ ॥ विरया वीरा समुट्ठिया कोहकायरियाइपीसणा । पाणे न हणन्ति सव्वसो पावाओ विरयाऽभिनिव्वुडा ॥ १२॥ १००॥ न वि ता अहमेव लुप्पए लुप्पन्ती लोगंसि पाणिणो। एवं सहिएहि पासए अणिहे से पुढेऽहिंयासए ॥ १३ ॥ १०१॥ धुणिया कुलियं व लेववं किसए देहमणासणाइहिं । अविहिंसामेव पव्वए अणुधम्मो मुणिणा पवेइयो ॥ १४ ॥ १०२ ॥ सउणी जह पंसुगुण्डिया विहुणिय धंसयई सियं रयं । एवं दविओवहाणवं कम्म खवइ तवस्सि माहणे ॥ १५ ॥ १०३ ॥ उट्ठियमणगारमेसणं समग ठाणठियं तवस्सिणं । डहरा बुड्ढा य पत्यए अवि सुस्से न य तं लभेज नो ॥ १६ ॥ १०४ ॥ जइ कालुणियाणि कासिया जइ रोयन्ति य पुत्तकारणा। दवियं भिक्खं समुट्ठियं नो लब्भन्ति न संठवित्तए ॥ १७ ॥ १०५ ॥ जइ वि य कामेहि लाविया जई नेजाहि ण वन्धिउं घरं। जइ जीविय नावकसए नो लब्भन्ति न संठवित्तए ॥ १८ ॥१०६॥ सेहन्तिय णं ममाइणो माय पिया य सुया य भारिया। पोसाहिण पासओ तुम लोग परं पि जहासि पोसणो ॥ १९॥ १०७॥ अन्ने अन्नेहि मुच्छिया मोहं जन्ति नरा असंवुडा। विसमं विसमेहि गाहिया ते
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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