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________________ १०१० सुत्तागमे [णायाधम्मकहाओ पुत्ता! ते पंच सालिअक्खए सगडसागडेणं निजा(इ)एस्ससि ? । तए णं सा रोहिणी धण्णं (सत्यवाह) एवं वयासी-एवं खलु ताओ ! इओ तुभ पंचमे संवच्छरे इमस्स मित्त जाव वहवे कुंभसया जाया तेणेव कमेणं, एवं खलु ताओ ! तुम्भे ते पंच सालिअक्खए सग(ड)डीसागड़ेणं निजाएमि । तए णं से धण्णे सत्यवाहे रोहिणीयाए सुबहुयं सगडीसागडं दलयइ। तए णं रोहिणी सुवहुं सगडीसागडं गहाय जेणेव सए कुलघरे तेणेव उवागच्छइ (२ त्ता) कोहागा(२)रं विहाडेइ २ त्ता पल्ले उभिदइ २ त्ता सगडीसागडं भरेइ २ त्ता रायगिह नगरं मज्जमज्झेणं जेणेव सए गिहे जेणेव धण्णे सत्यवाहे तेणेव उवागच्छइ । तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग जाव बहुजणो अन्नमन्नं एवमाइक्खइ ४-धन्ने णं देवाणुप्पिया! धण्णे सत्यवाहे जस्स णं रोहिणीया सुण्हा (जीए ण) पंच सालिअक्खए सगडसागडिएगं निजाएइ। तए णं से धणे सत्थवाहे ते पंच सालिअक्खए सगडसागडेणं निजा(ए)इए पासइ २ त्ता हट्ट जाव पडिच्छइ २ त्ता तस्सेव मित्तनाइ० चउण्ह य सुण्हाणं कुलघर(वग्गस्स)पुरओ रोहिणीयं सुण्हं तस्स कुलंघरस्स वहूसु कज्जेसु य जाव रहस्सेसु य आपुच्छणिजं जाव वटावियं पमाणभूयं ठावेइ । एवामेव समणाउसो! जावपंच [से] महव्वयाई संवड्डियाई भवंति से णं इहभवे चेव वहणं समणाणं जाव वीईवइस्सइ जहा व सा रोहिणीया । एवं , खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते तिबेमि ॥ ७० ॥ गाहाओ-जह सेट्ठी तह गुरुणो जह णाइजणो तहा समणसंघो। जह वहुया तह भव्वा जह सालिकणा तह वयाई ॥१॥ जह सा उज्झियनामा उज्झियसाली जहत्यमभिहाणा । पेसणगारित्तेणं असंखदुक्खक्खणी जाया ॥ २ ॥ तह भन्बो जो कोई संघसमक्खं गुरुविदिण्णाई। पडिवजिउं समुज्झइ महव्वयाई महामोहा ॥ ३ ॥ सो इह चेव भवंमी जणाण धिक्कारभायणं होइ । परलोए उ दुहत्तो णाणाजोणीसु संचरइ ॥ ४ ॥ जह वा सा भोगवई जहत्थनामोवभुत्तसालिकणा । पेसणविसेसकारित्तणेण पत्ता दुहं चेव ॥५॥ तह जो महव्वयाइं उवभुंजइ जीवियत्ति पालितो । आहाराइसु सत्तो चत्तो सिवसाहणिच्छाए ॥ ६॥ सो एत्थ जहिच्छाए पावइ आहारमाइ लिंगित्ति । विउसाण नाइपुज्जो परलोयम्मी दुही चेव ॥ ७ ॥ जह वा रक्खियवहुया रक्खियसालीकणा जहत्थक्खा । परिजणमण्णा जाया भोगसुहाइं च संपत्ता ॥ ८ ॥ तह जो जीवो सम्म पडिवजित्ता महव्वए पंच । पालेइ निरइयारे पमायलेसंपि वजेतो ॥ ९ ॥ सो अप्पहिएकरई इहलोयंमिवि विऊहि पणयपओ । एगंतसुही जायइ परम्मि मोक्खंपि पावेइ ॥ १०॥ जह रोहिणी उ सुण्हा रोवियसाली जहत्थमभिहाणा !
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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