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________________ ९७३ सु० १ ० १] सुत्तागमे अजप्पभिई णं भंते ! मम दो अच्छीणि मोत्तूणं अवसेसे काए समणाणं निग्गंथाणं निसट्ठ-त्तिकट्ठ पुणरवि समण भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वं० २ त्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! इयाणि दोच्चपि सयमेव पव्वावियं सयमेव मुडावियं जाव सयमेव आयारगोयरं जायामायावत्तियं धम्ममाइक्ख (ह)न्तु । तए णं समणे भगवं महावीरे मेहं कुमारं सयमेव पवावेइ जाव जायामायावत्तियं धम्ममाइक्खइ-एवं देवाणुप्पिया ! गंतव्वं एवं चिट्ठियव्वं एवं णिसीयव्वं एवं तुयट्टियव्वं एवं भुंजियन्वं एवं भासियव्वं उट्ठाय २ पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं संजमेणं संजमियव्वं । तए णं से मेहे समणस्स भगवओ महावीरस्स अयमेयारूवं धम्मियं उवएसं सम्म पडि. (च्छइ)वजइ २ ता तह (चिठ्ठइ) गच्छइ जाव संजमेणं संजमइ । तए णं से मेहे अणगारे जाए इरियासमिए अणगारवण्णओ भाणियव्वो । तए णं से मेहे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए तहा(एया)रूवाणं थेराणं सामाइयमाइयाणि एक्कारस अंगाई अहिजइ २ त्ता बहूहि चउत्थछट्टमदसमदुवालसेहि मासद्धमासखमणेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नयराओ गुणसिलयाओ उजाणाओ पडि निक्खमइ २ त्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ ३४ ॥ तए णं से मेहे अणगारे अन्नया कयाइ समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वं० २ ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुन्भेहि अब्भणुन्नाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिवंधं करेह । तए णं से मेहे अणगारे समणेण भगवया महावीरेणं अब्भणुन्नाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरड, मासियं भिक्खुपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोभेइ तीरेइ किट्टेइ सम्मं काएण फासेत्ता पालित्ता सोभत्ता तीरेत्ता किट्टेत्ता पुणरवि समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वं० २ त्ता एवं वयासी-इच्छामि ण भंते ! तुन्भेहि अब्भणुनाए समाणे दोमासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह । जहा पढमाए अभिलावो तहा दोच्चाए तच्चाए चउत्थाए पंचमाए छम्मासियाए सत्तमासियाए पढमसत्तरा(य)इंदियाए दोच्चं सत्तराइदियाए तइयं सत्तराइंदियाए अहोराइंदियाएवि एगराइंदियाएवि । तए णं से मेहे अणगारे वारस भिक्खुपडिमाओ सम्मं काएणं फासेत्ता पालेता सोभत्ता तीरेत्ता किट्टेत्ता पुणरवि वंदइ नमसइ वं० २ त्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुन्भेहिं अब्भणुनाए समाणे गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्म उवसंपजित्ताणं विहरित्तए । अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेह । तए णं से मेहे अणगारे पढमं मासं चउत्थंचउत्थेणं.अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कडुए सूराभिमुहे
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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