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________________ श्रेणिक बिम्बसार सेठ जी वृक्ष के नीचे उनको छाता खोलते देखकर फिर हँसे। वह मन मे कहने लगे “यह नवयुवक वास्तव मे ही मूर्ख है, अन्यथा वृक्ष के नीचे छाता खोलकर क्यो बैठता।" सेठ जी राजकुमार को वही बैठा हुआ छोडकर गाव की ओर चले गए। उनका गाव कोई बडा गाव नही था। उसमे दो-चार के अतिरिक्त सभी घर छप्परो के थे । जो दो-चार घर पक्के कहे जाते थे वह भी चूने-ईट के न होकर मिट्टी की दीवारो के ही थे । सेठ जी का नाम सेठ इन्द्र दत्त था, उनका घर भी उनमे अपवाद न था। सेठ जी की पत्नी बहुत समय पूर्व मर चुकी थी। सन्तान के नाम पर उनके केवल एक कन्या ही थी, जिसका नाम नन्दिश्री था। उसकी आयु भी लगभग चौदह वर्ष की थी। सेठ जी के घर गृहस्थी के सारे कामकाज को नन्दिश्री ही किया करती थी। वह पढ़ी-लिखी तो थी ही, स्त्रियोचित सभी ललित कलाओ मे भी प्रवीण थी। उसने घर के काम-काज मे सहायता देने के लिये घर मे एक दासी को भी रखा हुआ था। पिता जी को आते देख कर नन्दिश्री ने आगे बढ कर उनकी अभ्यर्थना की और उनसे पूछा "पिता जी, अकेले आए अथवा और भी कोई आपके साथ आया है ?" "बेटी, अकेला तो मै नही आया। मेरे साथ एक ऐसा नवयुवक भी आया है, जो अपने वस्त्रो तथा मुख के तेज से तो ऐसा दिखलाई देता है कि जैसे सारे ससार पर राज्य करने के लिये ही विधाता ने उसकी रचना की हो, कितु उसने मार्ग मे अनेक ऐसी बाते की कि शायद ससार भर मे उससे अधिक मूर्ख कोई भी न हो।" नन्दिश्री-उसने मूर्खता की ऐसी क्या-क्या बाते की ? सेठ जी-उसने प्रथम तो मुझ अपरिचित को मामा बतलाया। फिर नन्दिग्राम मे भोजन न मिलने पर बाहिर आकर पूछने लगा कि वह गाव बसा हुआ था अथवा ऊजड । इसके पश्चात् जब हम एक गाव से होकर निकले तो वहा एक व्यक्ति अपनी स्त्री को पीट रहा था। उसको देखकर राजकुमार ने पूछा कि वह अपनी बधी हुई स्त्री को मार रहा था अथवा खुली हुई को। वहा से चलकर जब हम एक खेत मे आए तो वह खेत जोतनेवाले एक किसान को ।
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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