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________________ मूर्खता अथवा चातुर्य देखकर पूछने लगा कि वह अपने खेत की उपज को खा चुका अथवा आगे चल कर खायेगा । फिर उसने नदी मे जूते पहिन लिये और जब मैंने उससे अपने गाव के पास वाले उस आम के पेड़ के नीचे बैठने को कहा तो वह अपना छाता खोल कर उसके नीचे बैठ गया। मै उससे कह आया हूँ कि उसे घर "पहुँच कर शीघ्र ही बुलवा लू गा। नन्दिश्री-पिता जी, आपने उसे ठीक नही समझा। वह तो ससार के सबसे अधिक बुद्धिमान् व्यक्तियो मे से है । सेठ जी-यह तूने किस प्रकार समझा बेटी? नन्दिश्री–देखिये पिता जी । मामा-भानजे से अधिक निस्वार्थ सम्बन्ध ससार भर मे दूसरा नही होता। अतएव आपके साथ निस्वार्थ प्रीति-सम्बन्ध स्थापित करने के लिये उसने आपको मामा कहा। फिर नन्दिग्राम मे जब आप लोगो को भोजन नहीं मिला तो वह ग्राम कैसा ही बडा होने पर भी आप लोगो के लिये तो ऊजड ही था । वह गाव वाला जो अपनी स्त्री को मार रहा था सो विवाहित स्त्री को बधी हुई तथा (बिना विवाह के घर मे बिठलाई हुई स्त्री को बिना बधी हुई कहा जाता है ।) उसका अभिप्राय यह था कि यदि वह पुरुष अपनी बधी हुई स्त्री को मार रहा है तो वह पिट कर भी घर मे ही बनी रहेगी अथवा यदि वह करी हुई स्त्री को मार रहा है तो वह पिट-छित कर भाग जावेगी। उसने जो किसान के विषय मे पूछा कि वह अपनी उपज को खा चका अथवा आगे खायेगा तो उसका यह अभिप्राय था कि यदि उस पर ऋण है तो वह अपनी उपज को बोने के पूर्व ही खो चुका. क्योकि ऋण की दशा मे महाजन उसकी सारी उपज को उससे अपने ऋण के बदले मे छीन लेगा । किन्तु यदि उसके ऊपर ऋण नही है तो वह अपनी उपज को बाद में पूरे वर्ष भर मजे मे बैठ कर खावेगा । उसने जो नदी मे जूते पहिने तथा वृक्ष के नीचे छाता लगाया अपने इन कार्यों से उसने यह प्रकट किया कि वह एक उच्च राजवश मे उत्पन्न हुआ है। क्योकि राजा लोग नदी में ककर आदि से पैरो की रक्षा के लिये जूते पहिनते है और पक्षियो की बीट आदि से अपने वस्त्रो की रक्षा करने के लिये वृक्ष के नीचे छाता लगाते है। अच्छा, मै उसे अभी घर बुलवाती हूँ।
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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