SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूर्खता अथवा चातुर्य खेत उस समय खाली थे और एक खेत मे एक किसान हल चला रहा था । राजकुमार उस किसान को बहुत समय तक देखता रहा । बाद मे वह सेठ जी से बोला "मामा ! यह किसान अपने खेत की उपज को खा चुका है अथवा आगे खावेगा ?" सेठ जी राजकुमार के इस प्रश्न पर भी चुप हो गए । वह सोचने लगे कि यह कैसा विचित्र युवक है कि इसे यह भी दिखलाई नही देता कि जुतनेवाले खेत की उपज को किसान पहिले से किस प्रकार खा सकता है । यह लोग खेतो को पार करते हुए जब सडक पर आए तो मार्ग मे बालू अधिक थी, जिस पर जूते पहन कर जाना कठिन था । अतएव राजकुमार ने अपने जूते उतार कर हाथो मे ले लिये। बालू पार करने पर इन लोगो को एक नदी मिली । इसी नदी के पार सेठ जी का अपना ग्राम भी था । सेठ जी ने बालू मे जूते नही उतारे थे । नदी पार करने के लिये उन्होने जूते उतार कर अपने हाथ मे ले लिये, किन्तु राजकुमार ने— जो अभी तक अपने जूतो को हाथो मे लिये हुए था नदी पार करने के लिये जूतो को पहिन लिया । राजकुमार को पानी में जूते पहनते देखकर सेठ जी को कुछ हँसी आ गई । वह सोचने लगे कि अब इसमें सन्देह नही रहा कि यह नवयुवक मूर्ख है । इसने बालू मे तो जूते उतार दिये और नदी मे जहा जूते उतारने चाहिएँ थे, जूते पनि लिये । नदी मे जल अधिक नही था । अतएव उसको दोनो ने सुगमता से पार कर लिया । नदी पार करके दोनो एक छोटे से बगीचे मे पहुँचे । सेठ जी एक बड़े वृक्ष की ओर संकेत कर राजकुमार से बोले " राजकुमार । यह वेणपद्म नगर है । मैं इसी मे रहता हूँ । तुम तनिक देर इस आम के वृक्ष के नीचे सुस्ताओ । में घर जाकर तुमको अभी बुलवा लूगा ।” 'बहुत अच्छा' कह कर रोजकुमार बिम्बसार उस वृक्ष के नीचे चले गए । वहा जाने पर वह अपना छाता खोलकर और उसे अपने ऊपर तान कर बैठ गए । ८१
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy