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________________ अश्व भेंट विचित्रवर्मा-जिस पर महाराज की कृपा हो उसकी कुशलता मे कौन बाधा दे सकता है अन्नदाता | महाराज-कहो,आज कैसे आना हुआ? विचित्रवा-इन्हीं दिनो महाराज सोमशर्मा को एक सर्वलक्षण-सम्पन्न उत्तम अश्वरत्न की प्राप्ति हुई। उन्होने मन मे सोचा कि ऐसे उत्तम अश्व का स्थान केवल गिरिव्रज की राजकीय अश्वशाला ही है । अस्तु, मै उसको उनकी ओर से लेकर महाराज की सेवा में उपस्थित हुआ हूँ। महाराज-अश्व कहा है सामन्त । विचित्रवर्मा-वह बाहिर खडा हुआ है महाराज । महाराज-अच्छा, आप अश्व को लेकर कल प्रात काल नगर के बाहिर के मैदान मे मिले । उसकी परीक्षा उसी समय कर ली जावेगी। "जैसी महाराज की आज्ञा" कहकर विचित्रवर्मा महाराज को पुनः अभिवादन करके चला गया। इसी समय विश्राम का घटा बजने पर महाराज सभाभवन से उठ कर राजमहल मे चले गये।
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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