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________________ श्रेणिक बिम्बसार भूल से मगव सीमा मे प्रवेश कर गई, किंतु यदि यह सैनिक टुकडिया मगध सैनिको को हटा कर हमारी सीमा मे दूर तक बढ आईं तो उनके आक्रमक रूप को स्वीकार करने में भी विलम्ब न होगा।" रांजा-तब तो इन दोनो ही सीमामो पर अधिक सेनाए भेज देनी चाहिये और अवन्ति तथा कोशल के शासको के पास इस विषय मे विरोध पत्र भी भेज देना चाहिये। कल्पक-ऐसा ही किया जावेगा महाराज । कल्पक के अपना कथन समाप्त करते ही दौवारिक ने सभा मे प्रवेश करके महाराज को प्रणाम करके उनसे निवेदन किया दौवारिक-महाराज की जय हो। राजा-क्या है दौवारिक ? दौवारिक-महाराज | चन्द्रपुर के राजा सोमशर्मा का सामन्त विचित्रवर्मा महाराज की सेवा में उपस्थित होना चाहता है। वह अपने साथ एक सर्वलक्षण सम्पन्न अश्व भी महाराज को भेट करने लाया है। राजा-उसे आदरपूर्वक अन्दर ले आओ। राजा के यह कहते ही दौवारिक महाराज को प्रणाम करके बाहिर चला गया और थोड़ी देर मे ही विचित्रवर्मा के साथ वापिस आया। विचित्रवर्मा एक तीस वर्ष का युवक था। उसका गरीर लम्बा, सुडौल तथा भारी था। उसका चेहरा भरा हुआ और मूछे चढी हुई थी। रौब उसके चेहरे से फटा पडता था। उसके वस्त्र सामन्तो जैसे थे। उसके बाए कन्धे पर एक धनुष पडा हुआ था और पीठ पर तरकश था, जिससे पता चलता था कि नागरिक जीवन की अपेक्षा वह वन्य जीवन ही अधिक व्यतीत करता था। उसने आते ही दोनो हाथ जोड कर महाराज को अभिवादन किया। महाराज-कहो विचित्रवर्मा कुशल से तो हो ?.
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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