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________________ • अश्व-परीचा प्रातकाल का समय है। शीतल, मन्द पवन के झोके चित्त को प्रसन्न कर रहे है । सूर्य अभी कठिनता से डेढ हाथ ऊपर चढा है। गौएँ तथा भैसे अपनेअपने घरो से चरने के लिए जगल में जा चुकी है। किसान भी अपने-अपने हलबैल लेकर खेतो मे जा चुके है। गिरिव्रज नगर के उत्तर की ओर के मैदान में इस समय विशेष चहल-पहल दिखलाई दे रही है । यहा विशेष रूप से छिडकाव कराया गया है। क्रमश मैदान मे रक्षक सेनाए आनी आरम्भ हो गई । इन सेनाओ के सैनिको को रक्षक के रूप में मैदान के चारो ओर नियत कर दिया गया। विचित्रवर्मा अपने विचित्र अश्व तथा कुछ रक्षको सहित पहिले से ही मैदान में उपस्थित था। इतने में गिरिव्रज के उत्तरी द्वार पर तुरही का शब्द हुआ। तुरही के शब्द के साथ अन्य बाजे भी बजते हुए दिखलाई दिये। बाजो के पश्चात् महाराज भट्टिय उपश्रेणिक का घुडसवार अग रक्षक दल था। उनके बीच मे महाराज उपश्रेणिक महामात्य कल्पक तथा अन्य पदाधिकारियो से घिरे हुए एक रथ मे बैठे हुए जुलूस के रूप में चले आ रहे थे। इस जुलूस के मैदान मे आने पर राजा के अतिरिक्त अन्य सभी अधिकारी अपने-अपने रथो से उतर पडे । महाराज के सेनाओ का अभिवादन स्वीकार कर चुकने पर विचित्रवर्मा ने आगे बढ कर उनसे निवेदन किया "महाराज | यही वह अश्व है, जिसके विषय में मैने महाराज से कल निवेदन किया था।" महाराज-अच्छा, यह अश्व है। अश्व तो वास्तव में बहुत सुन्दर है । कल्पक जी, हमारे अश्वाध्यक्ष को तो आपने इस अवसर पर उपस्थित रहने की आज्ञा दे ही रखी होगी।
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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