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________________ अश्व मेंट लगभग डेढ पहर दिन चढा होगा। गिरिव्रज का सभा-भवन आगत व्यक्तियो से ठसाठस भरा हुआ था । सभा मे एक ओर बन्दिजन राजा का स्तुतिपाठ कर रहे थे तो दूसरी ओर व्यवहारिक जनता के व्यवहारो (मुकदमो) को सुन-सुन कर राजा भट्टिय उपश्रेणिक के सम्मुख उपस्थित करता जाता था। सभा-भवन में अनेक आसन बिछे थे, जिन पर राज्य के विविध पदाधिकारी अपने-अपने पद के अनुसार बैठे हुए थे। एक ओर विदेशी राजदूत भी बैठे हुए मगध की परराष्ट्रनीति की एक घोषणा पर विचार कर रहे थे। बीच में एक सात हाथ का सोने का सिहासन रखा हुआ था, जिस पर बढिया गद्दी-तकियो पर महाराज भट्टिय उपश्रेणिक बैठे हुए थे। उनकी बगल में उनसे एक नीचे सिहासन पर मगध के प्रधान अमात्य ब्राह्मण कल्पक बैठे हुए थे कि सेनापति भद्रसेन ने कहा"महाराज । हमारी कोशल तथा अवन्ति की सीमा पर उत्पात बढते जाते है। कोशल के महाराज प्रसेनजित् तथा अवन्ति के महाराज चण्डप्रद्योत दोनो ही साम्राज्य कामना वाले है। सीमा पर सेनाए कम है, यदि वहा अधिक सेनाए भेज कर सीमा का प्रबन्ध न किया गया तो न जाने भविष्य मे हमको अचानक किस देश की सेना से मगध की भूमि पर युद्ध करना पडे।" कल्पक-महाराज | सेनापति भद्रसेन का कहना यथार्थ है। मेरे चरो ने भी आकर मुझे दोनो सीमाओ पर विरोधी पक्ष की सेनाओ की टुकडियो के बढने का समाचार दिया है। वैसे अभी तक हमारी कोशल तथा अवन्ति दोनो के साथ ही मित्रता की सधि है। किन्तु आक्रमण करने वाली सेनाए सगठित सेनाए न होकर सेना की टुकडिया है, जिनके विषय मे हारने पर तो यह सुगमता से कहा जा सकता है कि सैनिक टुकडियो अपनी भमि को न पहचानने के कारण
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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