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________________ जैन धर्म का परिग्रहण के धारक एवं मेघ के समान परोपकारी होते है। प्राणेश्वर । आप विश्वास रखे कि मेरे गुरु निश्चय से परम ज्ञानी, परम ध्यानी तथा दृढ वैरागी होगे। किन्तु यदि वे इसके विपरीत परीषहो से भय करने वाले, अति परिग्रही, व्रत तप आदि से शून्य, मद्य-मास एव मधु के लोभी होगे तो वह मेरे गुरु नही हो सकते। इसीलिये आपके अत्यन्त यत्न करने पर भी जैन धर्म तथा जैन साधुप्रो मे मेरी श्रद्धा कम नहीं हुई। मैं किसी अन्य धर्म पर आक्षेप नही करती, किन्तु तथ्य यह है कि जैन मुनि के जैसे पवित्र आचरण और किसी धर्म के साधु के नहीं होते।" रानी चेलना के इन शब्दो को सुनकर राजा का हृदय भय के मारे काँप गया । वह और कुछ न कहकर केवल इतना ही कह सके____ "पिये | तूने इस समय जो कुछ कहा है वह बिल्कुल सत्य दिखलाई देता है। यदि तेरे गुरु इतने क्षमाशील है तो हम दोनो उनको इसी समय रात्रि मे जाकर देखेंगे और उनका उपसर्ग दूर करेगे। मै अभी तेज़ चलने वाली सवारी का प्रबन्ध करता हूँ।" इस पर रानी बोली "नाथ | अब आपके मुख से फूल झडे है। यदि आप स्वय न भी जाते तो मै स्वय अवश्य जाती। आपने यह बात बिल्कुल मेरे मन की कही। अब आप चलने में शीघ्रता करे।" यह कहकर रानी चलने की तैयारी करने लगी। राजा ने उसी समय एक तेज़ घोडो वाली गाडी तैयार करा कर कुछ थोडे से सैनिक लेकर वन की ओर प्रयाण आरभ कर दिया। वह दोनो थोडी देर मे ही मुनिराज यशोधर के समीप जा पहुंचे। इधर राजा मुनिराज के गले मे सर्प डाल कर गये, उधर मुनि महाराज ने अपने ध्यान को और भी गाढा करके मन में इस प्रकार चिन्तन करना प्रारम्भ किया"इस व्यक्ति ने जो मेरे गले में सर्प डाला है, सो मेरा बड़ा उपकार २४९
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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