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________________ तक्षशिला में इन दिनो ऐसा बडा भारी विश्वविद्यालय था कि संसार भर मे उसकी जोड का दूसरा विश्वविद्यालय नही था। उसमे सभी विषयो के साथसाथ सन्यन तथा युद्ध विद्या की भी शिक्षा दी जाती थी। आर्य बहुलाव, उसके प्रधान आचार्य थे। तक्षशिला के बाद दूसरा विश्वविद्यालय उन दिनो राजगृह मे था। १६. काम्बोज-यह जनपद उत्तरापथ में गान्धार के निकट था। इसकी राजधानी का नाम राजपुर अथवा राजघट था। नन्दिनगर नाम की एक अन्य बस्ती भी काम्बोज मे थी। महाभारत मे चन्द्रवर्मन तथा सुदक्षिण काम्बोज थे। इसकी राजधानी द्वारिका थी। यहा सघ राज्य था। गान्धार के परे उत्तर में पामीर का प्रदेश तथा उससे भी परे बदख्शा का प्रदेश काम्बोज महाजनपद मे ही था। इस प्रकार इन सोलह महाजनपदो मे से निम्निलिखित छै मे सघ राज्य थे। बज्जी, मल्ल, मत्स्य, कुरु, पाञ्चाल तथा काम्बोज। शेष दस में राजा राज्य करते थे। राजा लोग सदा ही सघ राज्यो को हडपने की योजना बनाया करते थे। तत्कालीन अन्य जनपद-कोशल-नरेश प्रसेनजित् के आधीन निम्नलिखित पाच राज्य थे-काशी, यायावि, सेतव्यानरेश, हिरण्यनाभ कौशल और कपिलवस्तु के शाक्य । इस प्रकार बुद्ध के समय सोलह महाजनपदो मे से कई लुप्त हो चुके थे। यह सोलह महाजनपद उत्तरी भारत मे ही थे। दक्षिण के राज्य इनसे पृथक् थे । दक्षिण के पैठण, पतित्थान अथवा दक्षिणापथ का उल्लेख भी इस काल के ग्रन्थो मे पाता है। यह आध्रों की राजधानी थी। कलिङ्ग का नाम भी इन सोलह जनपदो मे नही है। उसकी राजधानी दन्तिपुर थी। चोल और पाण्ड्य राज्य तो वाल्मीकीय रामायण से भी पुराने राज्य थे। सौवीर (सिन्ध) देश की राजधानी रोरुक थी। यह व्यापार का प्रधान केन्द्र था । वहाँ यहूदी राजा सोलोमन के जहाज़ भी व्यापारार्थ आया करते थे । यहा के राजा का नाम रुद्रायण था। मद्रदेश की राजधानी सागल भारत के उत्तर-पश्चिम । मे थी। महाभारत के समय में इसे साकल कहा जाता था। बाद में राजा .१६
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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