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________________ वैशाली में साम्राज्यविरोधी भावना "राजाधिराज गणपति राजा चेटक की जय ।" " तुमको किसने भेजा है " "देव | मुझे महाराज उदयन ने भेजा है। उन्होने देव के लिये एक पत्र दिया है । " महाराज — क्या चिरजीव उदयन कौशाम्बी- नरेश बन गया ? राजा शतानीक का क्या हुआ ? ক। क दूत - देव । महाराज शतानीक के उपासना करते-करते ही प्राण निकल गए । इसलिये महाराज उदयन अव कौशाम्बी-नरेश बन गए है। उन्होने राजगद्दी पर बैठते ही प्रथम आप ही को यह पत्र भेजा है । यह कहकर दूत ने अपने वस्त्रो में से एक पत्र निकाल कर राजा के हाथ मे दिया । पत्र प्रच्छी तरह से एक कीमती वस्त्र मे बन्द था । राजा ने उसके बन्द काटकर उसे पढना प्रारंभ किया । तब महारानी सुभद्रा बोली "पत्र को जोर से पढिये महाराज " अच्छा सुनो, मैं पढता हूँ ।" " - "सिद्ध श्री शुभ स्थान वैशाली नगरी मे महामान्य पूज्य नाना जी राजराजेश्वर गणपति राजा चेटक को कौशाम्बी से वत्स- नरेश उदयन की सादर चरण-वन्दना । नानाजी । मुझे इस बात का बड़ा दुख है कि पिताजी ने किसी कुमत्ररणा के वश मे पडकर चम्पा पर श्राक्रमरण किया, जिसमे मौसा दधिवाहन मारे गये । मैने निश्चय किया है कि पिताजी के इस पाप का मै मार्जन करूँगा । बहिन चन्दनबाला आजकल मेरे पास है । उसने भगवान् महावीर स्वामी के कठिन अभिग्रह को पूर्ण करके जो उन्हे आहार दान दिया है उससे उसने तीनो लोको मे अक्षय कीर्ति का सपादन किया है। उसके सबन्ध में आप निश्चिन्त रहे । आजकल उसको वैराग्य बहुत अधिक बढा हुआ है । उसका निश्चय है कि वह गृहस्थ के चक्कर मे नही पड़ेगी और भगवान् महावीर स्वामी को केवल ज्ञान होते ही उनसे दीक्षा लेकर साध्वी बन जावेगी । उसे आप भगवान् को केवल ज्ञान होने यही रहने दे । १६७
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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