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________________ श्रेणिक बिम्बसार ___ "मैंने सुना है कि भाई दृढवर्मा आप के ही पास है। मैने उनको उनका राज्य वापिस देने का निश्चय किया है। आप उनसे कह दे कि वह अपनी बचीखुची सेना को लेकर चम्पापुरी पर अधिकार करके वहाँ जम कर बैठ जावे । मैने वहाँ से अपनी सेना को बुलाने का आज्ञापत्र भेज दिया है। कुछ थोडे से सैनिक वहाँ प्रबन्ध के लिये अवश्य है, किन्तु उनको आज्ञा दे दी गई है कि वह दृडवर्मा के सैनिको का कोई प्रतिरोध न कर उनके आने पर उन्हे नगर का शासन सौप दे। पूजनीया नानाजी को मेरी चरण-वन्दना कहे ।" आपका स्नेही दौहित्र उदयन रानी सुभद्रा-बेटा उदयन तो सच्चा धार्मिक निकला। बेटे दृढवर्मा । मेरी बधाई। राजा चेटक-अगराज के रूप मे मै भी बेटा दृढवर्मा तुमको बधाई देता हूँ। इस पर दृढवर्मा ने नाना तथा नानी के चरण छूकर कहा"यह सब सफलता मुझे आपके ही आशीर्वाद से प्राप्त हुई है।" राजा चेटक-तुम्हारी समस्या के सुलझ जाने से लिच्छवियो की एक इच्छा तो पूरी हो गई। हदवर्मा-क्या लिच्छवियो की अभी कोई और इच्छा शेष है ? राजा चेटक-लिच्छवियो में आजकल वत्स देश तथा मगध पर आक्रमण करने का आन्दोलन किया जा रहा है। वह दोनो को ही साम्राज्याकाक्षी मानकर उनके अधिकाधिक विरोधी बनते जा रहे है। अब दृढवर्मा के अपना राज्य प्राप्त कर लेने से वत्स देश के प्रति उनकी विरोधी भावना शान्त हो जावेगी । किन्तु मगध के बिम्बसार की राजनीतिक शक्ति को कुचलना बज्जी गणतन्त्र का प्रत्येक नागरिक अपना कर्तव्य समझता है। मैने मगध तथा वैशाली के युद्ध को रोकने का बहुत यत्न किया, किन्तु जान पड़ता है कि हमको प्रगण पर आक्रमण करना ही पड़ेगा।
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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