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________________ श्रेणिक बिम्बसार राजा चेटक-तब तो भगवान् का अभिग्रह उसने अचानक ही पूरा कर दिया। दृढवर्मा-जी, इसीलिये भगवान् फिर लौट आये और उन्होने अपने दोनो हाथ उसके सामने फैला दिये । चन्दनबाला ने उन्ही कुलथी के दानो का एक-एक ग्रास बनाकर उनके हाथ मे दिया और भगवान् ने पाँच मास के बाद अपना अभिग्रह पूरा होने पर कौशाम्बी मे चन्दनबाला के हाथ से आहार लिया। राजा चेटक-फिर क्या हुआ? हदवर्मा-फिर तो इस घटना का शोर सारी कौशाम्बी मे मच गया। प्राकाश से देवो ने फूल बरसाए और कहा-"धन्य यह पात्र और धन्य यह दान ।" कौशाम्बी के सभी स्त्री-पुरुष चन्दनबाला के दर्शन को आने लगे। इस समाचार का पता पाकर राजा शतानीक तथा मौसी मृगावती भी उसके दर्शन को आए मौसी उसे पहचान कर अपने साथ ले गई। तब से चन्दनबाला मौसी के पास कौशाम्बी मे है । मौसी ने अपने पुत्र उदयन से यह प्रतिज्ञा कराई है कि वह मुझे मेरा राज्य वापिस दिला देगा। वह इस प्रकार बाते कर ही रहे थे कि दौवारिक ने कहा"राजाधिराज गणपति राजा चेटक की जय।" राजा-क्या है दौवारिक ? दौवारिक–देव | एक दूत कौशाम्बी से आया है। वह कहता है कि उसे महाराज को एक गुप्त सदेश देना है। अत उसे दरबार मे बुलाने से पूर्व प्रथम राजमहल में मिलने की अनुमति दी जावे। - रानी सुभद्रा-उसे मेरे सामने ही बुलाइये प्राणनाथ | सभव है वह बेटी चन्दना का कुछ और सदेशा लाया हो। राजा-अच्छा, दौवारिक | तुम दूत को यही भेज दो। दौवारिक यह सुनकर चला गया और थोड़ी देर मे एक दूत को लेकर फिर अन्दर आया। दूत ने आकर महाराज को प्रणाम करके कहा
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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